UAPA Act kya hai
UAPA के तहत उमर खालिद पर हुई FIR लगा है . उमर खालिद पर आरोप है कि उन्होंने नॉर्थ-ईस्ट दिल्ली समेत दो जगह भड़काऊ भाषण दिए जिसमें नागरिकों से अपील की कि वे अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की यात्रा के दौरान सड़कों पर आएं और रास्ते रोकें ताकि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर ये बात जाए कि भारत में अल्पसंख्यकों को किस तरह से प्रताड़ित किया जा रहा है.
चलिए UAPA एक्ट के बारे जानते है और इसके तहत क्या कार्रवाई होती है
UAPA (unlawful activities prevention amendment act) लोकसभा में इस बिल को 24 जुलाई 2019 में लाया गया फिर राज्यसभा में दो अगस्त 2019 को पास किया गया. जिसके बाद से ये एक्ट कानून बन गया.
UAPA kanoon kya hai ?
सरकार मूल रूप से आतंकवाद निरोध में ये कानून लाई थी.
केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने संसोधन के लिए सबसे पहले आठ जुलाई 2019 को यूएपीए बिल लोकसभा में पेश किया था. सरकार के इस बिल के पीछे की मंशा बढ़ते आतंकवाद पर लगाम कसना बताया जा रहा था.
इस कानून के तहत केंद्र सरकार किसी भी संगठन को आतंकी संगठन घोषित कर सकती है अगर निम्न 4 में से किसी एक में उसे शामिल पाया जाता है.
1. आतंक से जुड़े किसी भी मामले में उसकी सहभागिता या किसी तरह का कोई कमिटमेंट पाया जाता है 2. आतंकवाद की तैयारी 3. आतंकवाद को बढ़ावा देना
4. आतंकी गतिविधियों में किसी अन्य तरह की संलिप्तता
- is kanoon ke tarah 90 din tak ho sakti hai agar kisi pe uapa case ke tahat case darj hua hai to agreem jamanat nahi mil sakti .
- agar police ne choda tab bhi agrim jamanat nahi mil sakti . section 43d 5 ke tahat, court saksh ko jamanat nahi de sakta ,agar uske khilaaf pratham drishtya case banta hai .
- bharat ki kshetriya akhandata par sawal karna bhi gairkaanooni hai .lekin mahaj sawal karna kaise gair kaanooni hua? kis baat ko sawaal maana jayega ?
- bharat ke khilaaf asantosh failana bhi apradh hai ,lekin kanoon me asantosh paribhashit ya uska matlab nahi bataya gaya hai
- atankwadi gang ke sadastya ko ajiwan karawas diya jata hai. lekin kanoon me sadasyta ko paribhashit nahi kiya gaya hai
- Yeh kanoon tada aur pota jaise kanoon ko khatam karke UAPA laya gaya ..
UAPA कानून 2019
ये कानून राष्ट्रीय जांच एजेंसी (NIA) को असीमित अधिकार देता है. अब तक के नियम के मुताबिक एक जांच अधिकारी को आतंकवाद से जुड़े किसी भी मामले में संपत्ति सीज करने के लिए पुलिस महानिदेशक (डीजीपी) से अनुमति लेनी होती थी, लेकिन अब यह विधेयक इसके लिए सिर्फ एनआईए के महानिदेशक से अनुमति लेनी होगी.
नए नियम के मुताबिक एनआईए के अफसरों को ज्यादा अधिकार दिए गए हैं. अब ऐसे किसी भी मामले की जांच इंस्पेक्टर रैंक या उससे ऊपर के अफसर कर सकते हैं.