अकबर बीरबल कहानियां (Akbar Birbal Stories In Hindi)
तारो की गिनती (Akbar Birbal Story In Hindi about stars)
एक रात बादशाह अकबर बीरबल के साथ अपने महल के झरोखे में खड़े हुए थे। आसमान में चाँद खिला हुआ था और सितारे भी चमक रहे थे।तभी बादशाह अपनी ही धुन में बीरबल से पूछ बैठे, ‘बीरबल, क्या तुम मुझे आसमान में तारों की सही गिनती बता सकते हो?”
“बिल्कुल जहांपनाह,” बीरबल तुरंत बोले, “आसमान में उतने ही तारे हैं, जितने एक घोड़े के सिर पर बाल होते हैं।” “लेकिन बीरबल,” बादशाह कुछ सोचते हुए बोले, “घोड़े के सिर पर तो अनगिनत बाल होते हैं।” “हुजूर, वही तो मैं कह रहा हूँ।
तारे भी आसमान में अनगिनत ही हैं ।” बीरबल छूटते ही बोले। बीरबल का सटीक जवाब सुनकर बादशाह भौंचक्के रह गए।
फिर अकबर हँसते हुए बोले, “बीरबल, हाजिरजवाबी में तुम्हारा कोई टक्कर का नहीं। चिराग लेकर ढूँढने पर भी तुम्हारे जैसा दिमाग वाला कोई नहीं मिलेगा।”
बिना काटे छोटा करना (Akbar birbal story in hindi language )
एक दिन अकबर और बीरबल बाग में सैर कर रहे थे। बीरबल लतीफा सुना रहे थे और अकबर उसका मजा ले रहे थे। तभी अकबर ने नीचे घास पर पड़ा बांस का एक टुकड़ा देखा । अकबर ने बीरबल की परीक्षा लेने की सोची ।
बीरबल को बांस का टुकड़ा दिखाते हुए वह बोले, ‘‘क्या आप इस बांस के टुकड़े को बिना काटे छोटा कर सकते हो ?’’ बीरबल लतीफा सुनते सुनाते रुक गए और अकबर की आंखों में देखा । अकबर कुटिलता से मुस्कराए, बीरबल समझ गए कि बादशाह सलामत उससे मजाक करने के मूड में हैं।
अब जैसा बेसिर-पैर का सवाल था तो जवाब भी कुछ वैसा ही होना चाहिए था।
बीरबल ने इधर-उधर देखा, एक माली हाथ में लंबा बांस लेकर जा रहा था। उसके पास जाकर बीरबल ने वह बांस अपने दाएं हाथ में ले लिया और बादशाह का दिया छोटा बांस का टुकड़ा बाएं हाथ में।
बीरबल बोला, ‘‘हुजूर, अब देखें इस टुकड़े को, हो गया न बिना काटे ही छोटा।’’बड़े बांस के सामने वह टुकड़ा छोटा तो दिखना ही था। निरुत्तर बादशाह अकबर मुस्करा उठे बीरबल की चतुराई देखकर।
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आगरा में कितने मोड़ (Akbar Birbal Story in Hindi written)
एक दिन अफगानिस्तान के बादशाह का दूत अकबर के दरबार में आया और उन्हें सलाम करके बोला, “हमारे बादशाह आगरा तशरीफ लाना चाहते हैं।
आगरा का बाजार देखने और आपसे मिलने की उनके मन में बड़ी ख्वाहिश है। लेकिन यहाँ आने के पहले वे ये जरूर जानना चाहते हैं कि आगरा की गलियों में कितने मोड हैं, ताकि यहाँ आने के बाद वे पशोपेश में न पड़ जाएँ।”
बादशाह अकबर ने जवाब दिया, “यह पता लगाने में कुछ वक्त लगेगा कि आगरा की गलियों में कितने मोड़ हैं। आप कुछ दिन हमारे यहाँ मेहमान बनकर रहिए। फिर हम आपको जवाब बता देंगे।”
“नहीं महाराज , मैं रुक नहीं पाउँगा । मेरे बादशाह ने मुझे यह बात पता करके तुरंत लौटने का हुक्म दिया है। मुझे कल सुबह आगरा छोड़ देना है।” दूत ने बताया। उसकी बात सुनकर बादशाह के माथे पर बल पड़ गए।
घोड़ों की गिनती में कुछ वक्त तो लगना ही था। भला इतनी जल्दी आगरा की गलियों में घोड़ों की गिनती कैसे बता दी जाए।
उन्होंने इस सम्बंध में अपने दरबारियों से भी सलाह-मशविरा किया, लेकिन कोई भी इस समस्या का समाधान बता नहीं सका। बादशाह अभी भी इस चुनौती का हल खोजने में लगे ही थे, तभी बीरबल ने दरबार में प्रवेश किया।
बीरबल को देखकर बादशाह ने राहत की साँस ली। उन्होंने बीरबल को बताया, “अफगानिस्तान के बादशाह ने हमसे एक बात बताने को कहा है। उन्होंने आगरा तशरीफ लाने की ख्वाहिश जाहिर की है| “
लेकिन इसके पहले वे ये जानना चाहते हैं कि आगरा की गलियों में कुल मोड़ कितने हैं उन्होंने यह पता करना है।” लगाने के लिए वक्त भी नहीं दिया है। उनके दूत को कल सुबह ही आगरा से कूच “यह तो बड़ा आसान सवाल है,
जहांपनाह!” बीरबल बोले, “और मझे लगता है काबुल के बादशाह को पहले से ही इस सवाल का जवाब मालूम होगा।” “क्या कह रहे हो तुम? क्या तुम इस सवाल का जवाब जानते हो?” बादशाह ने चौंकते हुए पूछा।
“बिल्कुल जानता हूँ, हुजूर! आगरा ही नहीं, दुनिया की सारी गलियों और सडकों में सिर्फ दो ही मोड़ होते हैं, दायाँ और बायाँ!” बीरबल ने कहा। बीरबल की बात सुनकर बादशाह हँसते हुए बोले,
“बीरबल, तुमने अपनी हाजिरजवाबी से एक बार फिर हमारी सल्तनत की लाज रख ली। हम तुम्हें बतौर इनाम पाँच सौ अशर्फियाँ देते हैं।”
बादशाह का नगीना (Akbar Birbal Story in Hindi font)
एक दिन बादशाह अकबर के दरबार में रहने वाले एक विदेशी प्रतिनिधि ने कहा, “जहांपनाह, हमारे मुल्क में कई उस्ताद वैद्य हैं जो रत्नों व मणियों से इलाज करते हैं। उनके पास ऐसे-ऐसे पत्थर है जो दुनिया में कहीं और मिलने नामुमकिन हैं।
सोने और पीतल का अंतर जानने के लिए अक्सर इन पत्थरों का इस्तेमाल होता है। क्या आपके मुल्क में भी इस तरह की कोई चीज है?” “बिल्कुल है,” बादशाह बोले, “मेरे पास ऐसा नग है जो इससे भी बड़ी करामात कर सकता है।
वह सोने और चाँदी में ही नहीं, बल्कि अच्छी और बुरी बात में भी अंतर कर सकता है।” “ऐसी चीज तो निश्चय ही हैरतअंगेज होगी!” वह वैद्य बोला, “क्या आप मुझे वह चीज दिखा सकते हैं?”
“बिल्कुल दिखा सकता हूँ!” कहते हुए बादशाह ने बीरबल को सामने आने का इशारा किया।
सारे दरबारी और वह विदेशी प्रतिनिधि यह सब बड़ी हैरत से देख रहे थे।
“यही है हमारा करामाती पत्थर!” बादशाह बीरबल की ओर इशारा करते हुए बोले
“यही वह बेशकीमती नगीना है जो सोने और पीतल ही नहीं, बल्कि अच्छी और बुरी बात में अंतर समझने काबिलियत भी रखता है।”
“आपने हीरे की कद्र कर ली है, बादशाह सलामत,” वह विदेशी प्रतिनिधि बोला, “आपका नगीना वाकई किसी भी कीमती से कीमती नगीने से बढ़कर है। हम सब आपके इस नगीने को सलाम करते हैं।” बादशाह बड़े गर्व से बीरबल की ओर देख रहे थे।
हरे घोड़े की कहानी – अबकर बीरबल
एक दिन अकबर बीरबल के साथ शाही बाग़ की सैर के लिए गए। चारों ओर हरियाली को देखकर अकबर को बहुत आनंद आया। कुछ देर बाद सैर करते करते राजा अकबर कहने लगा कि, मेरा तो इस हरी भरी हरियाली को देखकर मन कर रहा है कि हम हरे घोड़े पर बैठकर इस हरे बगीचे में घूमे। उन्होंने बीरबल से कहा, “बीरबल मुझे हरे रंग का घोड़ा चाहिए”। उसने बीरबल को कहा कि ‘मैं तुम्हें आदेश देता हूं कि, तुम 7 दिनों के अंदर हमारे लिए एक हरे घोड़े का इंतजाम करो’।
अकबर और बीरबल दोनों को पता था कि, हरे रंग का घोड़ा होता ही नहीं। पर अकबर को तो बीरबल की परीक्षा लेनी थी। राजा चाहते थे कि बीरबल किसी तरह अपनी हार को स्वीकार करें। मगर, बीरबल भी बहुत चालाक थे। वो जानता था कि, राजा उनसे क्या चाहते हैं। इसलिए वो भी घोड़ा ढूंढने का बहाना बनाकर सात दिनों तक इधर-उधर घूमते रहे।
जैसे ही आठवां दिन आया वो अकबर के सामने हाज़िर हो गए और कहने लगे आपका काम हो गया है मैंने आपकी आज्ञा के अनुसार हरे रंग के घोड़े का इंतज़ाम कर दिया है। ये सुनने के बाद अकबर को आश्चर्य हुआ। उन्होंने कहा जल्दी बताओ कहा है हरे रंग का घोड़ा। बीरबल ने कहा घोड़ा तो आपको मिल जायेगा पर घोड़े के मालिक की 2 शर्ते है – पहली शर्त तो ये है कि घोड़े को लेने के लिए आपको खुद जाना होगा।
ये सुनकर अकबर बड़ा खुश हुआ और कहने लगा कि, ये तो बड़ी आसान शर्त है। फिर बीरबल ने दूसरी शर्त बताई की घोड़ा ले जाने के लिए हफ्ते के सातों दिन के आलावा कोई और दिन देखना होगा। बीरबल ने हँसते हुए कहा घोड़ा लाने के लिए शर्ते तो माननी ही पड़ेगी।
अकबर समझ गया कि बीरबल को मुर्ख बनाना कोई आसान काम नहीं है।
बर्तन में बुद्धि (Akbar Birbal Story in Hindi for class 5)
एक दिन श्रीलंका के राजा का दूत बादशाह अकबर के दरबार में आया। बादशाह का अभिवादन करके वह बोला, “महाबली, हमारे महाराज को पता चला है कि आपके दरबार में अनेक बुद्धिमान लोग हैं।
उनका आग्रह है कि आप एक घड़ा बुद्धि उनके लिए भी भेज दें ।” श्रीलंका के महाराज का आग्रह सुनकर वहाँ मौजूद सभी दरबारी हक्के-बक्के रह गए और एक-दूसरे की शक्ल देखने लगे।
वे समझ गए थे कि श्रीलंका का राजा इस प्रकार का आग्रह करके उनकी होशियारी का इम्तहान लेना चाहता है। लेकिन उन्हें इसका कोई जवाब नहीं सूझ रहा था।
एक दरबारी ने तो खड़े होकर बोल भी दिया, ‘बादशाह सलामत, यह प्रार्थना पूरी कर पाना मुमकिन नहीं है। भला ये कैसे हो सकता है कि बुद्धि को घड़े में भरकर भेज दिया जाए?”
तभी बीरबल खड़े होकर बोले, “मैं श्रीलंका के महाराज की इच्छा पूरी सकता हूँ, लेकिन मुझे इस काम के लिए एक हफ्ते का वक्त चाहिए।”
बादशाह ने दूत से कहा,”आप एक सप्ताह के लिए हमारे मेहमान खाने में रहिए। तब तक बुद्धि को घड़े में भरने का काम पूरा हो जाएगा। आपको इसमें कोई दिक्कत तो नहीं है न?”
दत को एक सप्ताह का वक्त देने में कोई दिक्कत नहीं लगी, क्योंकि वह सोच रहा था कि बुद्धि को घड़े में भर देना किसी के लिए सम्भव ही नहीं है। उसने बादशाह अकबर का प्रस्ताव स्वीकार कर लिया। उधर बीरबल ने घर पहुँचकर अपने नौकर से कहा, “बाजार जाकर कुछ छोटे मुँह वाले घड़े ले आओ।” नौकर बाजार गया और एक दर्जन घड़े लेकर लौट आया।
बीरबल उन घड़ों को लेकर अपने बगीचे में जा पहुँचे, जहाँ बहुत से कद्दू बोए गए थे। उन्होंने कुछ पौधों को घड़ों के अंदर स्थापित कर दिया। फिर उन्होंने नौकर को आदेश दिया कि उनके कहने तक उन घडों को वहाँ से न हटाया जाए।
एक हफ्ते बाद बीरबल बगीचे में उन कद्दुओं को जाँचने के लिए पहुंचे। उन्होंने पाया कि कद्दू उन घड़ों के अंदर पूरी तरह उग चुके हैं। उन्होंने नौकरों को कदू से भरा हुआ एक घड़ा बड़ी सावधानी से वहाँ से दरबार में ले चलने का हुक्म दिया।
बीरबल दरबार जा पहुंचे। बीरबल के साथ घड़ा देखकर बादशाह के चेहरे पर मुस्कुराहट तैरने लगी। वे समझ गए कि बीरबल ने श्रीलंका के राजा की योजना निष्फल कर देने की व्यवस्था कर ली है।
उन्होंने तुरंत एक नौकर को श्रीलंका के दूत को बुला लाने के लिए भेज दिया। थोड़ी ही देर में, श्रीलंका का दूत दरबार में आ पहुँचा। बीरबल को घड़ों के साथ वहाँ मौजूद देखकर वह भौंचक्का रह गया।
उसने सपने में भी नहीं सोचा था कि बीरबल उनकी चुनौती को इतनी आसानी से पूरा कर देंगे। फिर बीरबल दूत को वह घड़ा देते हुए बोले, “मैं आपको मुगल दरवार की ओर से बुद्धि से भरा यह घड़ा दे रहा हूँ।
आप सोच रहे होंगे कि बुद्धि हमने इस घड़े में कैसे डाली। मैं आपको बताना चाहूँगा कि हम बुद्धि को बहुत ही कीमती समझते हैं और इसीलिए इसे घड़ों में छिपाकर रखते हैं। हम श्रीलंका के महाराज को अपना मित्र समझते हैं।
यही कारण है कि हम इतनी बहुमूल्य वस्तु उन्हें उपहारस्वरूप दे रहे हैं। बुद्धि को घड़े से निकालते समय आप एक बात अवश्य ध्यान रखिएगा।
उसे इस घड़े से इतनी सावधानी से निकालना है कि उसे अथवा इस घड़े को किसी किस्म का कोई नुकसान नहीं पहुंचे। अगर आपने बिना घड़े को तोड़े-फोड़े बुद्धि निकाल ली, तो समझ लेना कि आप बुद्धिमान हो गए हैं।”
दूत को दिया गया घड़ा कपड़े से ढका हुआ था। कपड़ा हटाने पर जब दूत ने उसमें कद्दू पाया, तो वह हैरान रह गया। वह समझ नहीं पा रहा था कि उस कद को घडे के अंदर घुसेड़ा कैसे गया होगा।
उसने वहाँ से चुपचाप निकल जाने में ही अपनी समझदारी समझी । वह जल्दी से बादशाह का अभिवादन करके वहाँ से निकल लिया। जब बादशाह अकबर ने घड़े में रखी बुद्धि के बारे में जानना चाहा,
तो बीरबल ने अपने घर से एक और घड़ा मँगवा लिया। जब बादशाह ने उसके अंदर रखे कद् को देखा तो हँसते-हँसते लोटपोट हो गए। फिर वे बोले, “श्रीलंका का राजा अब जीवन में कभी बुद्धि के घड़े की माँग नहीं करेगा।”
अकबर के तीन सवाल (Akbar Birbal Story in hindi for class 5 students )
अकबर बीरबल के सवाल जबाब से जुड़े किस्से काफी प्रचलित हैं। माना जाता है कि बीरबल बहुत बुद्धिमान थे। अकबर के प्रश्नो के सटीक जवाब बीरबल के पास होते थे।
इन दोनों का ऐसा ही एक रोचक किस्सा, जिसमें अकबर ने बीरबल से ईश्वर से जुड़े तीन प्रश्न पूछ दिए
वो तीन प्रश्न थे :
- ईश्वर कहां रहता है?
- Ishwar (ईश्वर) कैसे मिलता है?
- ईश्वर करता क्या है?
जब अकबर ने ये प्रश्न पूछे तो बीरबल बहुत अचंभित हुए और उन्होंने कहा कि इन प्रश्नों के उत्तर वह कल बताएँगे.
यह बोल कर बीरबल अपने घर लौट आये.
बीरबल इन प्रश्नों को लेकर बहुत चिंतित थे। बीरबर के पुत्र ने चिंता का कारण पूछा तो बीरबल ने अकबर के तीन प्रश्न बता दिए.
बीरबल के पुत्र ने कहा कि वह कल खुद दरबार में बादशाह को इन तीनों प्रश्नों के जवाब देगा। अगले दिन बीरबल अपने पुत्र के साथ दरबार में पहुंच गए और बादशाह अकबर से कहा कि आपके तीनों प्रश्नों के जवाब तो मेरा पुत्र भी दे सकता है।
अकबर ने कहा- ‘ठीक है। बताओ ईश्वर कहां रहता है ?
इस प्रश्न के जवाब देने के लिए बीरबल के पुत्र ने चीनी मिली हुई दूध मंगाया । उसने वह दूध अकबर को दिया और कहा- ‘चखकर बताइए दूध कैसा है?’
अकबर ने चखकर बताया कि दूध मीठा है। तब बीरबल के पुत्र ने कहा- ‘इसमें चीनी दिख रही है?’ अकबर ने कहा- ‘नहीं, इसमें चीनी तो नहीं दिख रही है। वह तो दूध में घुल गई है।‘
बीरबल के पुत्र ने कहा जहांपनाह, ठीक इसी तरह ईश्वर भी संसार की हर चीज में घुला हुआ है, लेकिन दूध में घुली हुई चीनी की तरह दिखाई नहीं देता है। अकबर जवाब से संतुष्ट हो गए । अकबर ने दूसरा प्रश्न पूछा ‘ईश्वर कैसे मिलता है.
इस प्रश्न का जवाब देने के लिए बीरबल के पुत्र ने दही मंगवाया। बीरबल के पुत्र ने अकबर को दही देते हुए कहा ‘जहांपनाह, इसमें मक्खन दिखाई दे रहा है?’
अकबर ने कहा- ‘दही में मक्खन तो है, लेकिन दही मथने पर ही मक्खन दिखाई देगा.
बीरबल के पुत्र ने कहा ‘बिल्कुल सही जहांपनाह, ठीक इसी प्रकार ईश्वर भी मन का मंथन करने पर ही मिल सकते हैं।
अकबर इस जवाब से भी संतुष्ट हो गए । अकबर ने तीसरा प्रश्न पूछा- ‘ईश्वर क्या करता है?’ बीरबर के पुत्र ने कहा- ‘जहांपनाह, इस प्रश्न के जवाब के लिए आपको मुझे गुरु मानना होगा।‘
अकबर ने कहा- ‘ठीक है। अब से तुम मेरे गुरु और मैं तुम्हारा शिष्य।‘बीरबल के पुत्र ने कहा- ‘गुरु हमेशा ऊंचे स्थान पर बैठता है और शिष्य हमेशा नीचे बैठता है।.
अकबर तुरंत ही अपने सिंहासन से उठ गया और बीरबल के पुत्र को सिंहासन पर बैठकर खुद नीचे बैठ गया.
सिंहासन पर बैठते ही बीरबल के पुत्र ने कहा- ‘जहांपनाह, यही आपके तीसरे प्रश्न का जवाब है।
ईश्वर राजा को रंक बनाता है और रंक को राजा बना देता है।
अकबर इस जवाब से भी संतुष्ट हो गए .
इन सब सवालो के संतोष से भरे जबाब पा कर अकबर खुश हुए और बीरबल के पुत्र को ढेर सारे इनाम दे कर विदा किया.
ईश्वर का प्रेम (Akbar Birbal Story in Hindi for class 5 )
बादशाह अकबर सभी धर्मों के प्रति आदर भाव रखते थे। अपनी प्रजा में वे कभी धर्म के आधार पर भेदभाव नहीं करते थे। हिंदू धर्मशास्त्रों का तो उन्हें अच्छा-खासा ज्ञान था।
उदार और सहिष्णु स्वभाव के होने के साथ वे विनोदी स्वभाव के भी थे और बीरबल के साथ हल्की-फुल्की फुलझड़ियों का आदान-प्रदान करते रहते थे। एक दिन उन्होंने हास-परिहास के दौरान बीरबल से पूछा,
“एक बात बताओ, श्रीकृष्ण हर जगह अपने भक्तों की रक्षा करने खुद क्यों भागते थे? उनके पास कोई नौकर-चाकर नहीं थे क्या?” बादशाह की बात सुनकर बीरबल मुस्कुराए।
वे समझ गए कि बादशाह का मजाक करने का मन है। उधर बादशाह कहते चले गए, “ये देवता बड़े फुर्तीले भी होते हैं। किसी भक्त ने बुलाया नहीं कि दौड़े चले आते हैं, जैसे फुर्सत में ही बैठे हों।’
बीरबल बोले, “जहांपनाह, आपके सवाल का जवाब तुरंत देना मुमकिन नहीं है। मुझे कुछ वक्त दीजिए। मैं ठीक वक्त पर आपकी वात का माकूल जवाब दूंगा।” बादशाह हँस दिए। वैसे भी वे अपनी बात को लेकर गम्भीर नहीं थे।
बीरबल ने बादशाह के सामने अपने बात स्पष्ट करने के लिए एक योजना बनाई। वे एक मूर्तिकार के पास पहुंचे और उसे बादशाह के पोते खुर्रम की एक मोम की मूर्ति बनाने को कहा। बादशाह को खुर्रम से बहुत प्रेम था।
मूर्ति तैयार हो जाने पर वे उसे लेकर बादशाह के महल में जा पहुँचे और उनके नौकरों से उस मूर्ति को खुर्रम के कपड़े पहना देने को कहा। नौकरों ने तुरंत बीरबल की आज्ञा पर अमल किया।
अब कोई भी अगर दूर से खुर्रम की उस मूर्ति को देखता, तो उसे असली खुर्रम ही समझता। फिर बीरबल ने नौकरों को कुछ सलाह दी। अगले दिन बीरबल बादशाह के साथ शाही बगीचे में टहलने गए।
जैसे ही वे झील के पास आए, बीरबल ने नौकर को संकेत किया। उस मूर्ति को लेकर छिपे बैठे नौकर ने तुरंत ही वह मूर्ति झील के पानी में फेंक दी। बादशाह को दूर से देखकर ऐसा लगा, जैसे उनका पोता खुर्रम ही झील में गिर गया हो।
एक भी पल इंतजार किए बिना बादशाह भागते हुए आगे बढे और उन्होंने झील में छलांग लगा दी। जब वे तेजी से तैरते हुए उस जगह पर पहुंचे, तो पाया कि वह तो एक मूर्ति है। तब तक बीरबल भी वहाँ आ गए थे।
बीरबल की मदद से बादशाह झील के बाहर निकल आए। तभी बीरबल उनसे पूछ बैठे, “जहांपनाह, आपके पास नौकरों की कोई कमी तो है नहीं। फिर इस मूर्ति को गिरते देखकर आपने पानी में खुद छलांग क्यों लगा दी?
आपको खुद पानी में कूद जाने की क्या जरूरत थी?” “क्या बात कर रहे हो, बीरबल?” बादशाह बोले, “खुर्रम हमारा प्यारा पोता है। क्या हम उसे झील में डूबने से बचाने के लिए अपने नौकरों का इंतजार करते?
अगर इसी बीच वह डूब जाता तो? वह तो अच्छा हुआ कि यह बुत ही था!” यह मूर्ति मैंने ही बनवाई थी!” बीरबल ने खुलासा किया। “क्यों?” बादशाह ने बड़ी हैरत से पूछा।
“आपने खुर्रम को बचाने के लिए नौकरों का इंतजार नहीं किया, क्योंकि आप उससे बहुत मोहब्बत करते हैं। इसी तरह देवता भी अपने भक्तों से प्रेम करते हैं और उनकी रक्षा के लिए दौड़े आते हैं। भक्तों को बचाने के लिए देवता समय भी नहीं देखते।” बीरबल ने अपनी बात स्पष्ट की।
- मानसिंह बीरबल के सवाल-जवाब
- बीरबल का गधा
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- poet and rich man
- bad habit – गलत आदत
नकली साधु (Best Akbar Birbal Story in Hindi for class 5)
आगरा के पास ही एक साधु अपनी कुटिया बनाकर रहता था। सभी लोग उसे दीन-दुनिया से बेखबर एक संत समझते थे, लेकिन हकीकत में वह बड़ा लालची था।
एक दिन एक बूढ़ी औरत उसके पास आकर बोली, “साधु बाबा, मैं तीर्थयात्रा पर जा रही हूँ। मेरे पास ताँबे के कुछ सिक्के हैं, जो मेरी जीवन भर की बचत हैं। ये सिक्के अपने पास रख लीजिए।
मैं तीर्थयात्रा से लौटकर उन सिक्कों को आपसे ले लूँगी।” “मैं तो सांसारिक माया-मोह से संन्यास ले चुका हूँ।” साधु बोला, “धन से तो मेरा दूर-दूर तक कोई नाता नहीं है। इसलिए मैं इन सिक्कों को हाथ नहीं लगाऊँगा।
तुम खुद इन सिक्कों को झोंपड़ी के किसी कोने में गाड़ दो।” साधु ने कहा और अपनी आँखें ध्यान के लिए बंद कर लीं। उस औरत ने वे सिक्के झोंपड़ी के एक कोने में गाड़ दिए और तीर्थ यात्रा पर चली गई।
कुछ महीनों बाद वह औरत तीर्थयात्रा से लौट आई। वह साधु के पास पहुँचकर बोला, “महाज्ञानी साधु! मैं तीर्थयात्रा से लौट आई हूँ। क्या मैं उन सिक्कों को ले लूँ? उन्हों के बूते तो मैं अपना बुढ़ापा शांति से गुजारने का सपना हूँ।”
“जहाँ तुमने उन सिक्कों को गाड़ा हो, वहीं से उन्हें निकाल लो। मैं तो सिक्कों को हाथ लगाता नहीं हूँ।” पाखंडी साधु बोला। वह औरत झोंपड़ी के अंदर जाकर उसी जगह खुदाई करने लगी, जहाँ उसने अपने सिक्कों को गाड़ा था।
लेकिन जब उसने अपने सिक्कों को वहाँ नहीं पाया,तो वह भौचक्की रह गई। उसने सपने में भी नहीं सोचा था कि उसकी जीवन भर की कमा इस तरह गायब हो जाएगी।
उसने तो यही समझकर उन पैसों को साधु के पास छोड़ा था कि वहाँ वे सुरक्षित रहेंगे। वह भागती हुई उस साधु के पास पहुँची और बोली, “साधु बाबा, मेरे सिक्के वहाँ पर नहीं हैं, जहाँ मैंने उन्हें रखा था।”
“तो मैं क्या करूं?” पाखंडी साधु झल्लाता हुआ बोला, “तुमने खुद अपने सिक्कों को वहाँ रखा था। मैंने तो उन्हें छुआ तक नहीं था।” वह औरत समझ गई थी कि वह उस लालची साधु का शिकार बन गई है।
तभी उसके मन में बीरबल की मदद लेने का ख्याल आया। बीरबल बड़े ही बुद्धिमान थे और गरीबों की मदद के लिए जाने जाते थे। वह बीरबल के पास जा पहुँची और उन्हें सारी बात कह सुनाई।
बीरबल ने ध्यान से उसकी पूरी बात सुनी। कुछ देर सोचकर वे उससे बोले, “चिंता न करो, मैं तुम्हारे सिक्के दिलवा दूंगा। बस, तुम वैसा ही करना, जैसा मैं तुम्हें कह रहा हूँ।” फिर उन्होंने उस बुढिया को कुछ समझाया।
पूरी योजना समझकर बुढ़िया की बांछे खिल गई। अगले दिन बीरबल उस साधु के पास पहुँचकर बोले, “महात्मा जी, मैंने आपके विषय में बहुत कुछ सुन रखा है।
लोगों ने मुझे बताया है कि आप मोह-माया से दूर-दूर तक कोई रिश्ता नहीं रखते। इसीलिए मैं आपके पास आया हूँ। दरअसल मुझे अपने चचेरे भाई से मिलने के लिए देहली जाना है। वहाँ जाकर लौटने में मुझे एक महीने का वक्त लगेगा। मैं चाहता हूँ कि इतने समय के लिए आप मेरा यह थैला अपने पास रख लें।”
यह कहते हुए बीरबल ने एक थैला निकाला और उसे उस पाखंडी साधु के सामने ही खोल दिया। उस थैले में कीमती जवाहरात और मोती रखे हुए थे। इतनी दौलत देखते ही उस लालची साधु की आँखें चमकने लगीं।
वह मन ही मन सोच रहा था, ‘बस थोड़ी ही देर में ये सारी दौलत मेरी हो जाएगी। फिर मुझे साधु के वेश में यहाँ रहने की जरूरत ही नहीं रहेगी। मैं कहीं दूर भाग जाऊँगा और अपनी सारी जिंदगी मजे से करूंगा।’
तभी, उसे वह औरत उसी ओर आती दिखाई दी। उसने घबराकर सोचा, ‘अगर इस बुढ़िया ने इस मोटे आसामी के सामने कुछ कह दिया, तो फिर मेरे हाथ एक फूटी कौड़ी तक नहीं लगेगी।
मुझे इस बुढ़िया के चंद सिक्के देकर इसे भगा देना चाहिए।’ उस बुढ़िया के पास आते ही साधु उसके कुछ कहने के पहले ही बोल उठा, “अच्छा हुआ तुम आ गई।
मैंने ध्यान करने पर पाया कि तुम्हारे सिक्के झोंपड़ी के उत्तर वाले कोने की ओर दबे हुए हैं। तुम जाओ और वहाँ खोदकर सिक्के निकाल लो।” बुढ़िया अंदर जाकर उस जगह पर खोदने लगी।
थोड़ी ही देर में उसे वहाँ सिक्के दब मिल गए। तभी बीरबल का एक नौकर वहाँ आ पहुँचा और उनसे बोला, “मालिक, आपके देहली वाले भाई आए हुए हैं। वे आपसे मुलाकात करना चाहते हैं।” “वाह! यह तो बड़ा अच्छा हुआ।
अब तो मेरे देहली जाने की कोई जरूरत ही नहीं। है।” यह कहते हुए बीरबल अपने महल की ओर लौट पड़े। इस तरह उस पाखडा साधु को न बुढ़िया के सिक्के मिल सके और न ही बीरबल की दौलत। उसका तो वहा हाल हुआ कि ‘न खुदा ही मिला न विसाले सनम, न इधर के रहे न उधर के रहे ।
अकबर की बुद्धिमानी (Akbar birbal short story in hindi for class 5 )
एक बार दूसरे देश के बादशाह को अकबर की बुद्धिमानी की परीक्षा के लेने का विचार हुआ। उसने एक दूत को एक सन्देश भरा पत्र देकर सिपाहियों के साथ दिल्ली भेजा। पत्र का मजमून कुछ इस प्रकार था- ‘अकबरशाह ! मुझे [पता चला है कि आपके भारततवर्ष में कोई ऐसा पेड़ पैदा होता है जिसके पत्ते खाने से मनुष्य की आयु बढ़ जाती है। यदि यह बात सच्ची है तो मेरे रे ए उस पेड़ के थोड़े पत्ते अवश्य भिजवाएं.’
बादशाह उस पत्र को पढ़कर विचारमग्न हो गए। फिर कुछ देर तक बीरबल से राय-मशवरा कर उन्होंने सिपाहियों सहित उस दूत को कैद कर एक सुदृढ़ किले में बंद करवा दिया।
इस प्रकार कैद हुए उनको कई दिन बीत गए तो बादशाह अकबर बीरबल को लेकर उन कैदियों को देखने गए।
बादशाह को देखकर उनको अपने मुक्त होने की आशा हुई ।
बादशाह उनके पास पहुंचकर बोले – ‘तुम्हारा बादशाह जिस वस्तु को चाहता है, वह मैं तब तक उसे नहीं दे सकूंगा जब तक कि इस किले की एक-दो ईट न ढह जाए, उसी वक्त तुम लोग आजाद हो जायेगा ।
खाने-पीने की तुम लोगो को कोई तकलीफ नहीं होगी। मैंने उसका यथाचित प्रबन्ध करा दिया है।’
इतना कहकर बादशाह चले गए, परन्तु कैदियों की चिंता और बढ़ गई। वे अपने मुक्त होने के उपाय सोचने लगे। उनको अपने देश के सुखों का स्मरण कर बड़ा दुख होता था।
वे कुछ देर तक इसी चिंता में डूबे रहे। अंत में वे इश्वर की वन्दना करने लगे- ‘हे भगवान! क्या हम इस बन्धन से मुक्त नहीं किए जाएंगे? क्या हमारा जन्म इस किले में बन्द रहकर कष्ट भोगने के लिए हुआ है? आप तो दीनानाथ हैं, अपना नाम याद कर हम असहायों की भी सुध लीजिए।‘ इस प्रकार वे नित्य प्राथर्ना करने लगे।
अंत में उनकी प्रार्थना का असर हुआ ईश्वर की कृपा हुई। एक दिन बड़े जोरों का भूकम्प आया और किले का कुछ भाग भूकम्प के कारण धराशायी हो गया। सामने का पर्वत भी टूटकर चकनाचूर हो गया। इस घटना के पश्चात दूत ने बादशाह के पास किला टूटने की सूचना भेजी।
बादशाह को अपनी कही हुई बात याद आ गई। इसलिए उन्होंने दूत को उसके साथियों सहित दरबार में बुलाकर बोले – ‘आपको अपने बादशाह का आशय बिदित होगा और अब उसका उत्तर भी तुमने समझ लिया है। यदि न समझा हो तो सुनो, मैं उसे और भी स्पष्ट किए देता हूं।’
देखो, तुम लोग गणना में केवल सौ हो और तुम्हारी कराह से ऐसा सुदृढ़ किला ढह गया, फिर जहां हजारों मनुष्यों पर अत्याचार हो रहा हो, वहां के बादशाह की आयु कैसे बढ़ेगी? उसकी तो आयु घटती ही चली जाएगी और लोगों की आह से बादशाह का शीघ्र ही पतन हो जाएगा। हमारे देश में अत्याचार नहीं होता | गरीब प्रजा पर अत्याचार न करना और अच्छे से पोष्ण करना ही आयुवर्धक पेड़ है। बाकी सारी बातें मिथ्या हैं।‘
इस प्रकार समझा-बुझाकर बादशाह ने उस जत्थे के मुखिया को उसके साथियों सहित अपने देश लौट जाने की आज्ञा दी और उनका राह-खर्च भी दिया। उन्होंने अपने देश में पहुंचकर यहां की सारी बातें अपने बादशाह को समझाईं। अकबर की शिक्षा लेकर बादशाह दरबारियों सहित उनकी भूरि-भुरि प्रशंसा करने लगा।
अजीब मुकदमा (Akbar birbal hindi story for class 4 kids )
एक बार शहंशाह अकबर के दरबार में अजीब मुकदमा आया, जिसने सभी को सोचने पर मजबूर कर दिया।
बादशाह अकबर के दरबार में दो महिलाएं रोती हुई पहुंची। उनके साथ में लगभग 2 या 3 साल का सुंदर-सा बच्चा भी था। दोनों महिलाएं लगातार रो रही थीं और कह कर रही थीं कि बच्चा उनका है। दोनों शहर के बाहर रहती थीं, जिस कारण उन्हें कोई नहीं जाता था। इसलिए यह बताना मुश्किल था कि उस नन्हे से बच्चे की असली मां कौन है।
अब बादशाह अकबर के सामने मुसीबत आ गई कि न्याय कैसे करें और बच्चा किसको दें। इस बारे में उन्होंने सभी दरबारियों की राय ली, लेकिन कोई भी इस गुत्थी को नहीं सुलझा सका और तभी बीरबल दरबार में पहुंच गए।
बीरबल को देखकर बादशाह अकबर की आँखे चमक गयी । बीरबल के आते ही अकबर ने इस समस्या के बारे में उन्हें बताया। अकबर ने बीरबल से कहा कि अब आप ही इस समस्या का समाधान करो। बीरबल कुछ सोचते रहे और फिर जल्लाद को बुलाने के लिए कहा।
जल्लाद के आते ही बीरबल ने बच्चे को एक जगह बैठा दिया और कहा, “एक काम करते हैं इस बच्चे के दो टुकड़े कर दो ।
एक-एक टुकड़ा दोनों औरतों को दे देंगे। अगर इन दोनों महिलाओं में से किसी एक को यह बात मंजूर नहीं है, तो जल्लाद उस महिला के दो टुकड़े कर देगा।”
यह बात सुनते ही उनमें से एक महिला बच्चे के टुकड़े करने की बात मान गई और बोली कि उसे बीरबल का आदेश मंजूर है। वह बच्चे के टुकड़े को लेकर चली जाएगी.
लेकिन दूसरी महिला बिलख-बिलख कर रोने लगी और बोलने लगी, “मुझे बच्चा नहीं चाहिए। मेरे दो टुकड़े कर दो, लेकिन बच्चे को मत काटो। यह बच्चा दूसरी महिला को दे दाे।”
यह देखकर सभी दरबारी मानने लगे कि जो महिला डर की वजह से रो रही है वहीं दोषी है, लेकिन तभी बीरबल ने कहा कि जो महिला बच्चे के टुकड़े करने के लिए तैयार है उसे कैद कर लो वही गलत बात बोल रही है। इस बात को सुनकर वह महिला रोने लगी और मांफी मांगने लगी, लेकिन बादशाह अकबर ने उसे जेल में डलवा दिया।
बाद में अकबर ने बीरबल से पूछा कि तुमको कैसे पता चला कि असली मां कौन है? तब बीरबल ने मुस्कुराते हुए कहा, “महाराज मां सारी मुसीबतों को अपने सिर पर ले लेती है, लेकिन बच्चे पर आंच भी नहीं आने देती और यही हुआ।
इससे पता चल गया कि असली मां वह है जो खुद के टुकड़े करवाने के लिए तैयार है, लेकिन बच्चे के नहीं।”
बीरबल की बात सुनकर बादशाह अकबर एक बार फिर बीरबल की बुद्धि के कायल हो गए।
कहानी से सीख
हमें कभी भी किसी दूसरे की चीज पर अपना हक नहीं जताना चाहिए। साथ ही हमेशा सच्चाई की ही जीत होती है. समझदारी से काम लेने पर हर समस्या का हल निकल आता है
पहली मुलाकात (Akbar birbal hindi story class 4 students )
यह बात उस समय की है जब शहंशाह अकबर और बीरबल की पहली मुलाकात हुई थी। सभी बीरबल को महेश दास के नाम से जानते थे। एक दिन शहंशाह अकबर बाजार में महेश दास की बुद्धिमानी से खुश होकर उसे अपने दरबार में इनाम देने के लिए बुलाते हैं और निशानी के तौर पर अपनी अंगूठी देते हैं।
कुछ दिन के बाद महेश दास सुल्तान अकबर से मिलने का विचार बनाकर उनके महल की ओर रवाना हो गए । वहां पहुंचकर महेश दास देने देखा कि महल के बाहर बहुत लंबी लाइन लगी हुई है और दरबान हर व्यक्ति से कुछ न कुछ लेकर ही उन्हें अंदर जाने दे रहा है। जब महेश दास की बारी आयी, तो उसने कहा कि महाराज ने मुझे इनाम देने के लिए बुलाया है और उसने सुल्तान की अंगूठी दिखाई। दरबान के मन में लालच आ गया और उसने कहा कि मैं तुम्हें एक ही शर्त पर अंदर जाने दूंगा अगर तुम मुझे इनाम में से आधा हिस्सा दो तो।
दरबान की बात सुनकर महेश दास ने सोचा और उसकी बात मानकर महल में चले गए। दरबार में पहुंचकर वह अपनी बरी आने का इंतजार करने लगे। जैसे ही महेश दास की बारी आई और वो सामने आए, तो शहंशाह अकबर उन्हें देखते ही पहचान गए और दरबारियों के सामने उनकी बहुत तारीफ की। बादशाह अकबर ने कहा कि बोलो महेश दास इनाम में क्या चाहिए।
तक महेश दास ने कहा कि महाराज मैं जो कुछ भी मांगूगा क्या आप मुझे इनाम में देंगे? बादशाह अकबर ने कहा कि बिल्कुल, मांगों क्या मांगते हो। तब महेश दास ने कहा कि महाराज मुझे पीठ पर 100 कोड़े मारने का इनाम दें। महेश दास की बात सुनकर सभी को हैरानी हुई और बादशाह अकबर ने पूछा कि तुम ऐसा क्यों चाहते हो।
तब महेश दास उर्फ़ बीरबल ने दरबान के साथ हुई पूरी घटना बताई और अंत में कहा कि मैंने वादा किया है कि इनाम का आधा हिस्सा मैं दरबान को दूंगा। तब अकबर ने गुस्से में आकर दरबान को 100 कोड़े और लगवाए और महेश दास बीरबल की होशियारी देखकर अपने दरबार में मुख्य सलाहकार के रूप में रख लिया। इसके बाद अकबर ने उनका नाम बदलकर महेश दास से बीरबल कर दिया।
कहानी से सीख : Akbar birbal story in hindi for class 4 teaching
हमें अपना काम ईमानदारी से और बिना किसी लालच के करना चाहिए. अगर आप कुछ पाने की उम्मीद से कोई काम करते हो, तो हमेशा बुरे परिणाम का सामना करना पड़ता है.
गुलदस्ता (Akbar birbal story in hindi for class 4)
अकबर के महल में कई कीमती सजावट की वस्तुएं राखी होती थी , लेकिन एक गुलदस्ते से अकबर को बहुत लगाव था।
इस गुलदस्ते को अकबर हमेशा अपनी पलंग के पास रखते थे। एक दिन अचानक अकबर का कमरा साफ करते हुए उनके सेवक से वह गुलदस्ता टूट गया।
सेवक ने डर उस गुलदस्ते को जोड़ने की बहुत कोशिश की.
लेकिन नाकाम रहा। हार मान कर उसने टूटा गुलदस्ता कूड़ेदान में फेंक दिया और दुआ करने लगा कि राजा को इस बारे में कुछ पता न चले।
कुछ देर बाद बादशाह अकबर जब महल लौटे, तो उन्होंने देखा कि उनका प्रिय गुलदस्ता अपनी जगह पर नहीं है। राजा ने सेवक से उस गुलदस्ते के बारे में पूछा, तो सेवक डर के मारे कांपने लगा।
सेवक को हड़बड़ाहट में कोई अच्छा बहाना नहीं सूझा तो उसने कहा कि महाराज उस गुलदस्ते को मैं अपने घर ले गया हूं ताकि अच्छे से साफ कर सकूं।
यह सुनते ही अकबर बोले, “मुझे वो गुलदस्ता तुरंत लाकर दो।”
अब सेवक के पास सच बोलने के अलावा कोई रास्ता नहीं था।
सेवक ने अकबर को बता दिया कि वो गुलदस्ता टूट चुका है। यह सुनकर अकबर आग बबूला हो गए।
. क्रोध में अकबर ने उस सेवक को फांसी की सजा सुना दी। राजा ने कहा, “झूठ मैं बर्दाश्त नहीं करता हूं। जब गुलदस्ता टूट ही गया था, तो झूठ बोलने की क्या जरूरत थी”।
अगले दिन इस घटना के बारे में जब दरबार में जिक्र हुआ तो बीरबल ने इस बात का विरोध किया। बीरबल बोले कि झूठ हर व्यक्ति कभी-न-कभी बोलता ही है.
किसी के झूठ बोलने से अगर किसी का बुरा या गलत नहीं होता, तो झूठ बोलना गलत नहीं है। बीरबल के मुंह से ऐसे शब्द सुनकर अकबर बीरबल पर भड़क गए। उन्होंने सभा में लोगों से पूछा कि कोई ऐसा है यहां जिसने झूठ बोला हो।
सबने राजा को यही कहा कि नहीं वो झूठ नहीं बोलते। यह बात सुनते ही राजा ने बीरबल को राज्य से निकाल दिया।
बीरबल ने ठान ली कि वो इस बात को साबित करके रहेंगे कि हर व्यक्ति अपने जीवन में कभी-न-कभी झूठ बोलता है। बीरबल सीधे सुनार के पास गए। उन्होंने जौहरी से सोने की गेहूं जैसी दिखने वाली बाली बनवाई और उसे लेकर महाराज अकबर की सभा में पहुंच गए.
अकबर ने जैसे ही बीरबल को देखा, तो पूछा कि अब तुम यहां क्यों आए हो। बीरबल बोले, “जहांपनाह आज ऐसा चमत्कार होगा, जो किसी ने कभी नहीं देखा होगा।
बस आपको मेरी पूरी बात सुननी होगी। राजा अकबर और सभी सभापतियों की जिज्ञासा बढ़ गई और राजा ने बीरबल को अपनी बात कहने की अनुमति दे दी। बीरबल बोले, “आज मुझे रास्ते में एक महान पुरुष के दर्शन हुए। उन्होंने मुझे यह सोने की गेहूं की बाली दी है और कहा कि इसे जिस भी खेत में लगाओगे, वहां सोने की फसल उगेगी।
अब इसे लगाने के लिए मुझे आपके राज्य में थोड़ी-सी जमीन चाहिए।” अकबर ने कहा, “यह तो बहुत अच्छी बात है, चलो हम तुम्हें जमीन दिला देते हैं।” अब
बीरबल कहने लगे कि मैं चाहता हूं कि पूरा राज दरबार यह चमत्कार देखे। बीरबल की बात मानते हुए पूरा राज दरबार खेत की ओर चल पड़ा.
“खेत में पहुंचकर बीरबल ने कहा कि इस सोने से बनी गेहूं की बाली से फसल तभी उगेगी जब इसे ऐसा व्यक्ति लगाए, जिसने जीवन में कभी झूठ न बोला हो.
बीरबल की बात सुनकर सभी राजदरबारी खामोश हो गए और कोई भी गेहूं की बाली लगाने के लिए तैयार नहीं हुआ। बादशाह अकबर बोले कि क्या राजदरबार में कोई ऐसा व्यक्ति नहीं है जिसने अपने जीवन में कभी झूठ न बोला हो? सभी खामोश थे।
बीरबल बोले, “जहांपनाह अब आप ही इस बाली को खेत में रोप दीजिए।” बीरबल की बात सुनकर महाराज का सिर झुक गया।
अकबर =ने कहा, “बचपन में मैंने भी कई झूठ बोले हैं, तो मैं इसे कैसे लगा सकता हूं।” इतना कहते ही बादशाह अकबर को यह बात समझ आ गई .
बीरबल सही कह रहे थे कि इस दुनिया में कभी-न-कभी सभी झूठ बोलते हैं। इस बात का एहसास होते ही बादशाह उस सेवक की फांसी की सजा को रोक देते हैं।
कहानी से सीख
हर काम को सोच-विचार कर ही किया जाना चाहिए। बिना सोचे समझे किसी को बड़ा दण्ड नहीं देना चाहिए। एक छोटे से झूठ की वजह से किसी व्यक्ति का आंकलन भी नहीं किया जाना चाहिए क्योंकि परिस्थितियां ऐसी होती है कि लोग झूठ बोल देते हैं।
अकबर बीरबल की कहानी पढ़ने वाली हिंदी में ( BIRBAL KI KHICHDI )
सर्दियों के मौसम में बादशाह अकबर अपने बागीचे में बीरबल और एक अन्य मंत्री के साथ टहल रहे थे। टहलते टहलते बादशाह अकबर ने अपने मंत्री से कहा “इस साल कुछ ज्यादा ही ठंड पड़ रही है।
महल से बाहर निकलने में भी ठंड से हालत खराब हो रही है ?” मंत्री ने बादशाह की बात का जवाब देते हुए कहा, “जी हुजूर, बिल्कुल सही कहा आपने। इस साल तो इतनी ठंड पड़ रही है कि जनता ने घर से बाहर निकलना बहुत कम कर दिया है।”
टहलते हुए अकबर बगीचे में बने तालाब के किनारे जा पहुंचे। जैसे ही उन्होंने अपना हाथ पानी में डाला, उन्हें अहसास हुआ कि पानी बर्फ जैसा ठंडा है। पानी से हाथ बाहर निकालते हुए अकबर ने कहा “सही कह रहे हैं आप। इतनी ठंड में कौन घर से बाहर निकलेगा।”
बीरबल को चुपचाप देखकर बादशाह ने बीरबल से पूछा, “इस बारे में आपका क्या ख्याल है, बीरबल?” बीरबल ने सिर झुकाते हुए कहा, “माफी चाहता हूं हुजूर, मैं आप दोनों की बात से सहमत नहीं हूं।”
अकबर ने आश्चर्यचकित होकर बीरबल से पूछा, “अच्छा, तो हमें भी बताइए, क्या सोचना है आपका।” बीरबल ने कहा, “हुजूर मेरा मानना है कि एक गरीब व्यक्ति के लिए पैसा सबसे ज्यादा जरूरी है। उसे इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता कि मौसम कितना ठंडा है या गर्म।”
बादशाह अकबर ने बीरबल को चुनौती देते हुए कहा, “तो ठीक है, अगर आपने बर्फ जैसे पानी से भरे इस तालाब में किसी को रात भर खड़ा रखकर इस बात को प्रमाणित कर दिया, तो हम आपके लाए हुए व्यक्ति को 20 सोने के सिक्के इनाम में देंगे।”
बादशाह की बात से सहमति जताते हुए, बीरबल ने अगले दिन एक गरीब व्यक्ति को पेश करने का वादा किया।
अगले दिन सभा में बादशाह अकबर ने बीरबल ने पूछा कि क्या वो आदमी को लाए हैं, जो तालाब में खड़ा रहकर पूरी रात बिता सके। इस पर बीरबल ने रामलाल नामक एक गरीब व्यक्ति को दरबार में मौजूद किया और कहा कि यह 20 सोने के सिक्कों के लिए तालाब में पूरी रात बिताने को तैयार है। बादशाह अकबर ने सभा समाप्त करते हुए कहा कि ठीक है, दो सिपाही इस व्यक्ति की रातभर निगरानी करेंगे।
अगले दिन फिर से दरबार लगा और बादशाह ने बीरबल से रामलाल के बारे में पूछा, “बीरबल, कहां है आपका मित्र? कितनी देर टिक पाया वो उस बर्फीले पानी में?” बीरबल ने कहा, महाराज वो यहीं है। मैं उसे दरबार में पेश करने की इजाजत चाहता हूं।” बादशाह की इजाजत मिलते ही बीरबल ने रामलाल को दरबार में बुलाया।
बादशाह अकबर ने रामलाल को शाबाशी देते हुए कहा, “हमें इस बात पर यकीन नहीं हो रहा है कि तुम पूरी रात उस बर्फ जैसे पानी में रहे और आज हमारे सामने सही-सलामत खड़े हो। यह तुमने कैसे किया? पूरी सभा को बताओ।”
रामलाल ने कहा, “महाराज, शुरुआत में यह बहुत मुश्किल था, लेकिन कुछ समय बाद, मुझे महल की एक खिड़की से एक दीया जलता नजर आया। उस दीये को देखते हुए मैंने सारी रात बिता दी।” बादशाह अकबर ने चौंककर कहा, “यह तो धोखा है, तुमने हमारे महल के जलते दीये की गर्मी से सारी रात बिता ली। !
तुम्हारे इस धोखे के लिए हम तुम्हें सजा नहीं दे रहे हैं, लेकिन तुम अब इस इनाम के हकदार भी नहीं हो।” यह कहते हुए अकबर ने अपने सिपाहियों से रामलाल को महल से बाहर ले जाने को कह दिया और सभा समाप्त करके अपने कमरे में चले गए।
अगले दिन रोज की तरह सभा लगी, जब बादशाह अकबर सभा में आए, तो उन्होंने देखा कि सभी दरबारी अपनी-अपनी जगह पर मौजूद थे, सिर्फ बीरबल मौजूद नहीं थे। अकबर ने एक सिपाही से पूछा कि बीरबल कहां है, तो उसने बताया कि वो आज महल नहीं आए हैं। बादशाह ने सिपाही से कहा कि वो तुरंत बीरबल के घर जाए और उन्हें लेकर आए।
कुछ समय बाद, सिपाही अकेले ही दरबार में लौट आया। बादशाह के पूछने पर सिपाही ने बताया, “बीरबल अपने घर में खिचड़ी पका रहे हैं और उन्होंने कहा है कि खिचड़ी पूरी तरह पक जाने के बाद ही वो दरबार आएंगे।” सिपाही की यह बात सुनकर बादशाह सोच में पड़ गए, क्योंकि आज से पहले कभी भी बीरबल ने महल आने में देर नहीं की थी। अकबर को कुछ संदेह हुआ और उन्होंने बीरबल के घर जाने का निर्णय लिया।
जब बादशाह अकबर, बीरबल के घर पहुंचे, तो उन्होंने देखा कि बीरबल ने एक ऊंची खूंटी पर एक हांडी टांग रखी है और उसके नीचे जमीन पर लकड़ियां जला रखी हैं। बादशाह आश्चर्यचकित हो गए और बीरबल से पूछा कि वह क्या कर रहे हैं।
इस पर बीरबल ने जवाब दिया कि वह अपने भोजन के लिए खिचड़ी पका रहे हैं। बादशाह अकबर ने कहा, “क्या तुम पागल हो गए हो?
यह खिचड़ी कैसे पक सकती है। तुमने हांडी को इतने ऊपर टांग रखा है और आग नीचे जल रही है। ऐसे में खिचड़ी पकने के लिए हांडी तक गर्मी कैसे पहुंचेगी?”
इस बात पर बीरबल ने बहुत आदर के साथ बादशाह से कहा, “क्यों नहीं पहुंचेगी हुजूर? जब महल की खिड़की पर रखे एक दीये से रामलाल को गर्मी मिल सकती है, तो मेरी खिचड़ी की हांडी तो फिर भी आग के बहुत नजदीक है।”
बीरबल की बात सुनकर बादशाह हैरान हो गए और मुस्कुराते हुए कहा, “हम तुम्हारी बात अच्छी तरह समझ गए बीरबल।”
इसके बाद उन्होंने रामलाल को महल में बुलवाया और उसे 20 सोने के सिक्कों का इनाम दिया। बीरबल की चतुराई के लिए उन्होंने बीरबल को भी इनाम दिया।
कहानी से सीख : Akbar birbal story with moral
बीरबल की खिचड़ी की कहानी से हमें यह सीख मिलती है कि दूसरों की सफलता के लिए किए गए परिश्रम को जाने बिना उनके बारे में राय नहीं बनानी चाहिए।
नकली शेर (Akbar birbal Story in hindi pdf download )
मुग़ल काल में राजा एक दूसरे को पैगाम के साथ ही कुछ पहेलियां भी भेजा करते थे। एक राजा ने एक दिन मुगल सम्राज्य के बादशाह अकबर के दरबार में पिंजरे में कैद एक नकली शेर लेकर कर एक पैगाम भी भेजा था। पैगाम में लिखा था कि क्या मुगल राज्य में कोई ऐसा इंसान है, जो पिंजरे और शेर को छुए बिना शेर को बाहर निकाल सके। अब अकबर सोच में पड़ गए कि आखिर शेर और पिंजरे को हाथ लगाए बिना भला शेर को कैसे बाहर निकाला जा सकता है। पैगाम में यह भी साफ लिखा था कि पिंजरे से शेर को बाहर निकालने के लिए एक व्यक्ति को एक ही बार मौका मिलेगा।
अकबर परेशान हो गए। उन्हें लगा कि यह तो बहुत कठिन है और अगर शेर को पिंजरे से बाहर नहीं निकाल पाए, तो मुगल साम्राज्य की काफी बदनामी भी होगी। ये सब सोचते-सोचते उन्होंने दरबार में मौजूद सभी की तरफ देखते हुए पूछा, ‘है कोई जो इस पहेली को सुलझा सके’, लेकिन हर कोई इसी सोच में डूबा था कि आखिर यह संभव कैसे हो सकता। अकबर के पूछने पर जब किसी ने जवाब नहीं दिया, तो उन्हें अपने वजीर बीरबल की याद आने लगी, जो सभा में मौजूद नहीं थे। उन्होंने तुरंत दरबान को भेजकर बीरबल को दरबार में हाजिर होने का आदेश भिजवाया, लेकिन अफसोस बीरबल किसी सरकारी काम से राज्य से बाहर गए हुए थे।
रातभर अकबर इसी सोच में डूबे रहे और उन्हें नींद नहीं आयी । दूसरे दिन फिर दरबार लगा, लेकिन बीरबल की कुर्सी खाली देखकर अकबर उदास हो गए। अकबर ने एक बार फिर दरबारियों से पूछा, ‘क्या किसी के पास इस शेर को पिंजरे से बाहर निकालने की कोई तरकीब है।’ इतने में एक दरबान अकबर के सामने आया और उसने शेर को पिंजरे से निकालने की कोशिश की, लेकिन वो नाकामयाब रहा। दूसरे दरबान ने पहेली को सुलझाने के लिए एक जादूगर को बुलवाया, लेकिन वो भी विफल रहा।
कोशिश करते-करते शाम होने को आई, तभी बीरबल दरबार में पहुंच गए। अकबर को परेशान देखकर बीरबल ने पूछा, ‘क्या बात है सम्राट आप इतने परेशान क्यों हैं?’ बादशाह ने तुरंत शेर से जुड़ी पहेली के बारे में बीरबल को सबकुछ बताया। अकबर ने बीरबल से पूछा, ‘क्या तुम इस शेर को पिंजरे से बाहर निकाल सकते हो?’ बीरबल ने कहा, ‘हां, मैं कोशिश कर सकता हूं।’ अकबर बहुत खुश हुए, क्योंकि मुगल सम्राज्य में बीरबल के जैसा बुद्धिमान और चतुर दूसरा कोई नहीं था।
शेर को पिंजरे से बाहर निकालने के लिए बीरबल ने अकबर से कहा कि उन्हें दो सुलगती हुई लोहे की छड़ व सरिये की आवश्यकता है। शहंशाह ने तुरंत इसकी व्यवस्था करने को कहा। जैसे ही बीरबल को लोहे की छड़ मिली, तो उन्होंने पिंजरे को छुए बिना छड़ को अंदर पहुंचाकर उसे नकली शेर पर रख दिया। शेर लोहे की गर्म छड़ के स्पर्श में आते ही पिघलने लग गया, क्योंकि वो मोम का शेर था। देखते ही देखते पूरा शेर मोम के रूप में पिंजरे से बाहर निकल गया।
बीरबल की इस अकलमंदी पर अकबर बहुत प्रसन्न हुए। उन्होंने बीरबल से पूछा, ‘अरे! आखिर तुम्हें पता कैसे चला कि यह पिंजरे के अंदर मोम का शेर कैद है।’ बीरबल ने बड़ी ही नम्रता से जवाब दिया, ‘हजूर बस शेर को गौर से देखने की जरूरत थी। मैंने जब पहेली के बारे में जानने के बाद उसे गौर से देखा, तो लगा कि यह मोम का शेर हो सकता है। साथ ही राजा ने यह भी नहीं बताया था कि शेर को कैसे बाहर निकालना है, तो मैंने उसे पिंघलाकर बाहर निकाल दिया।’
इधर, दरबार में बीरबल की जय-जयकार होने लगी। उधर, पहेली लेकर अकबर के दरबार पहुंचा राजदूत अपने राज्य वापस लौट गया और बीरबल के इस कारनामे के बारे में राजा को बताया। कहा जाता है कि उस दिन के बाद से राजा ने ऐसी पहेली भेजना छोड़ दिया था।
मोम का शेर कहानी से सीख
अकलमंदी से सबकुछ संभव है। हर जगह बल नहीं, बल्कि बुद्धि का प्रयोग किया जाना चाहिए। दिमाग से हर समस्या का समाधान हो सकता है।
बुढ़िया की कहानी (Akbar Birbal story in Hindi language)
बीरबल के घर के पास ही एक बुढ़िया का मकान था। एक दिन बीरबल ने बुढ़िया के जोर-जोर से रोने की आवाज सुनी। पता करने पर उन्हें मालूम हुआ कि बुढ़िया का जवान बेटा लड़ाई में मारा गया है।
दरअसल, बुढ़िया का इकलौता बेटा मुगलिया फौज में सिपाही था और वह एक युद्ध में वीरगति को प्राप्त हो गया था। बेटे के बिना बुढ़िया का अपना जीवन गुजारना भी मुश्किल हो गया था
बीरबल ने भी उस औरत से मुलाकात करके उसके प्रति अपनी सहानुभूति व्यक्त की। बुढ़िया बोली, “मेरा बेटा अपनी तनख्वाह का आधा हिस्सा मुझे भेज देता था। उसी से मेरा घर चलता था।
अब तो मेरे लिए भुखमरी की स्थिति पैदा हो जाएगी।” बीरबल एक क्षण विचार करके उससे बोले, “क्या तुम्हारे पास कोई ऐसी वस्तु है, जो तुम बादशाह सलामत को तोहफे में दे सको?” “मेरे पास तो एक पुरानी तलवार के अलावा कुछ नहीं है।
वह तलवार भी मेरे बेटे की है।” बुढ़िया ने जवाब दिया। “वह तलवार दरबार में ले जाकर बादशाह सलामत को तोहफे में दे दो। इसके बदले वे जरूर तुम्हें कुछ देंगे।” बीरबल ने सलाह दी।
बुढ़िया ने वैसा ही किया, जैसा बीरबल ने उसने कहा था। अगले दिन वह दरबार में पहुँची और तलवार को दोनों हाथों पर रखकर बोली, “जहांपनाह, मेरा बेटा आपकी फौज में काम करता था। मैं यह तलवार आपको तोहफे में देना चाहती हूँ, जिससे यह फिर आपके काम आ सके।” बादशाह ने वह तलवार अपने हाथ में लेकर गौर से देखते हुए कहा, “इसमें तो जंग लग गई है। अब यह किसी काम की नहीं रही।”
फिर भी बादशाह ने एक नौकर से उस बुढ़िया को खजाने से कुछ धन दिलवा देने को कहा। बीरबल जानते थे कि वह धन बुढ़िया के लिए काफी नहीं होगा। “जहांपनाह, क्या यह तलवार मुझे देखने का एक मौका देंगे?”
यह कहते हुए बीरबल ने वह तलवार बादशाह के हाथों से ले ली और बड़ी हैरत का भाव दर्शाते हुए उसे देखने लगे। “क्या हुआ? तुम्हें इतनी हैरत किस बात से हो रही है?” बादशाह ने बड़े आश्चर्य से पूछा।
“मैंने सुना है कि बादशाह सलामत के किसी चीज को छ लेने पर वह चीज सोने की बन जाती है। मुझे हैरानी है कि इस बार ऐसा क्यों नहीं हुआ!” बीरबल बोले। बादशाह बीरबल का भावार्थ समझ गए।
उन्होंने एक नौकर को उस तलवार को सोने। के सिक्कों में तौलने और वे सिक्के उस बुढ़िया को दे देने का हुक्म दिया। सिक्के लेकर बहुत बुढ़िया खुशी-खुशी घर लौट गई।
सबसे चमकीली चीज (Akbar biral story in hindi With Moral)
एक बार बादशाह अकबर दरबार में बैठे-बैठे ऊब रहे थे। दरबार के सभी काम निपटाकर उनके दरबारी भी आराम की मुद्रा में बैठे थे ऐसे में बादशाह अकबर कोई ऐसी बात जरूर छेड़ देते थे, जिससे दरबार का माहौल खुशगवार हो गए।
इसी इरादे से उन्होंने दरबारियों से एक प्रश्न किया, “वह कौन सी चीज है जो सबसे ज्यादा चमकीली है?” जिसकी समझ में जैसा आया, उसने वैसा ही उत्तर दिया। किसी ने कहा कि दूध सबसे अधिक चमकीला होता है।
वहीं कुछ लोगों ने कहा कि रुई सबसे ज्यादा चमकीली होती है। सभी लोग अपनी-अपनी बुद्धि के अनुसार उत्तर दे रहे थे। आश्चर्य की बात यह थी कि सबसे अधिक बुद्धिमान समझे जाने वाले बीरबल अभी तक चुपचाप अपनी जगह बैठे हुए तमाशा देख रहे थे।
जब अकबर की नजर बीरबल पर पड़ी, तो उन्होंने उनसे पूछा, “तुम्हारा क्या कहना है, बीरबल? सभी लोग अपनी अपनी बात कह रहे हैं, फिर तुम क्यों चुप हो?” “मेरे ख्याल से सूरज की रोशनी दूसरी सभी चीजों से कहीं ज्यादा चमकीली होती है।”बीरबल ने उत्तर दिया।
“क्या तुम अपनी बात साबित कर सकते हो?” बादशाह अकबर ने पूछा। “हाँ, मैं कर सकता हूँ।” बीरबल बोले। दूसरे दिन बीरबल ने अकबर को अपने घर रात भर ठहरने के लिए आमंत्रित किया। अकबर बीरबल को अपने घर के सदस्य जैसा ही मानते थे, अत: उन्होंने बीरबल का यह निमंत्रण बेझिझक स्वीकार कर लिया और उनके यहाँ रहने चले गए। खाने के बाद बीरबल अकबर को शयनकक्ष में ले गए।
शयनकक्ष को शहंशाह के लिए खासतौर पर सजाया गया था। खुशबूदार इत्रों की वजह से कमरा इतना महक रहा था कि अकबर को तुरंत नींद आ गई। सुबह जब वे उठे, तो उन्होंने पाया कि शयनकक्ष के सभी दरवाजे व खिड़कियाँ बंद थीं तथा वे घोर अंधकार में खड़े थे।
वे अनुमान से द्वार की ओर बढ़े। तभी उनका पैर किसी वस्तु से टकराया। परंतु अंधेरा होने के कारण वे उस वस्तु को देख नहीं पाए। मुश्किल से टटोलते हुए वे दरवाजे तक पहुँच सके। उन्होंने जब द्वार खोला तो सूर्य की किरणें कमरे में आने लगीं। उन्होंने पीछे मुड़कर देखा तो पाया कि वे एक दूध से भरे कटोरे से टकरा गए थे। पास ही कुछ रुई भी पड़ी थी। अकबर अभी स्थिति को समझने की कोशिश कर रहे थे कि तभी वहाँ बीरबल ने प्रवेश किया।
“यह सब क्या हो रहा है? कमरे के सारे दरवाजे और खिड़कियाँ किसने बंद कर दिए थे? अंदर इतना घना अंधेरा छा गया था कि हाथ को हाथ नहीं सूझ रहा था। मुझे तो दरवाजे तक पहुँचना भी मुश्किल हो गया था।
किसी तरह टटोल-टटोलकर दरवाजे तक आ सका।” बादशाह ने आश्चर्यपूर्वक पूछा। “जहांपनाह, दरवाजे और खिड़कियाँ मैंने बंद किए थे।” बीरबल ने उत्तर दिया। बीरबल के इस उत्तर पर बादशाह को कुछ गुस्सा आ गया।
उन्हें बीरबल से ऐसी आशा कदापि न थी। “इस हरकत की वजह?” उन्होंने अपना गुस्सा दबाने की कोशिश करते हुए पूछा। “जहांपनाह, जब अंधेरा था, तब आप दूध और रुई के होते हुए भी कमरे में कुछ भी देखने में नाकामयाब रहे थे। आप तभी देख सके, जब सूरज की रोशनी अंदर आने लगी। अब आप ही बताइए कि सबसे ज्यादा चमकीली चीज कौन सी होती है?”
अकबर को यह समझते देर नहीं लगी कि बीरबल ने यह नाटक अपनी बात को सिद्ध करने के लिए ही किया है।
“मैं तुम्हारी बात समझ गया, बीरब कि सूरज की रोशनी से ज्यादा चमकीली चीज दुनिया में दूसरी नहीं है। परन्तु यह समझाने के लिए तुमने मुझे बहुत तकलीफ में डाल दिया था।
आगे से अपनी बात साबित करने के लिए थोडा सरल रास्ता अपनाना, जिससे ऐसी दिक्कत न हो।” अकबर ने कहा। बीरबल ने मस्कराते हए हामी भर दी।
सर्वोत्तम हथियार (Akbar Birbal Story in Hindi short )
एक दिन बादशाह अकबर शस्त्रागार में अपने अस्त्र-शस्त्रों का निरीक्षण कर रहे थे। पड़ोसी राज्यों के हमले के खतरे के चलते उन्हें सुरक्षा की चिंता सता रही थी, जिस कारण से वे यह जान लेना चाहते थे कि उनके पास कितने अस्त्र-शस्त्र हैं। चलते-चलते उन्होंने अपने साथ चल रहे दरबारियों से पूछा, “जंग का सबसे बढ़िया हथियार कौन सा है?” “जहांपनाह, तलवार।”
एक ने कहा। “तीर और धनुष, आलमपनाह।” दूसरे दरबारी ने अपनी बुद्धि घुमाई। “बीरबल, क्या हुआ भई, तुम्हारे हिसाब से जंग या अपने बचाव के लिए सबसे बढ़िया हथियार क्या होता है?’ बादशाह ने पूछा। “मैं समझता हूँ कि सबसे बेहतरीन हथियार वही है, जो वक्त पर तुरंत हाथ में आ जाए।” बीरबल ने कहा।
बीरबल के इस उत्तर पर सभी सोच में पड़ गए, क्योंकि इस उत्तर का अर्थ उनकी समझ में नहीं आया था। “तुम्हारी बात का क्या मतलब हुआ, बीरबल?” बादशाह ने भी पूछा। “इस तरह से बताना मुश्किल होगा, जहांपनाह,” बीरबल बोले, “किसी दिन सही मौका आने पर मैं अपनी बात का मतलब साफ कर दूँगा।” कुछ दिनों बाद बादशाह अकबर बीरबल के साथ नगर भ्रमण के लिए निकले।
पैदल इधर-उधर भ्रमण करते हुए वे दोनों सामान्य नागरिकों जैसे जीवन का आनंद उठा रहे थे। उन दोनों ने वेष बदल रखा था ताकि लोग उन्हें पहचान न सकें। चलते-चलते अचानक उन्होंने सामने से एक बड़े कुत्ते को आक्रमण की मुद्रा में अपनी ओर आते हुए देखा।
सहयोग से अकबर आगे व बीरबल पीछे चल रहे थे। कुत्ता इतना निकट आ चुका था कि पीछे मुड़कर भागना सम्भव नहीं था। वेष बदलकर तलवार भी छुपाए होने के कारण शीघ्रता से उसे निकालना भी सम्भव न हो सका। कुत्ता उछलकर आक्रमण करने ही वाला था कि तभी बीरबल ने शीघ्रता से किनारे पडे एक पत्थर को उठाकर कुत्ते की ओर फेंक दिया। कुत्ता भय से पलटकर वहाँ से भाग गया।
अब गली में उन दोनों के अतिरिक्त और कोई नहीं था। अकबर अपने चेहरे से पसीना पोंछते हुए बोले, “बीरबल, यदि तुमने पत्थर फेंककर उसे भगाया न होता, तो उस पागल कुत्ते ने तो हमारा काम तमाम कर ही दिया था।” “जहांपनाह, अब आप ही बताइए कि सबसे बढ़िया हथियार कौन सा है? तलवार या पत्थर?” बीरबल ने मुस्कुराते हुए पूछा।
“अरे! यहाँ तो मुसीबत से बचने को तुरंत हाथ में आया पत्थर ही सबसे बढ़िया हथियार साबित हुआ है। तुमने सही कहा था, बीरबल, मुसीबत के वक्त जो हथियार काम आए, वही सबसे अच्छा होता है।”
गधा कौन (Akbar Birbal Story in hind with moral pdf )
एक दिन बादशाह अकबर सारा कामकाज निपटाने के बाद मनोरंजन की मुद्रा में बैठे हुए थे। लेकिन बीरबल ऐसे वातावरण में भी शांत बैठे थे।
उस दिन वे हँसी-मजाक में कोई दिलचस्पी नहीं ले रहे थे। बीरबल के बिना बादशाह की महफिल पूरी कैसे होती? इसलिए उन्हें उकसाने की दृष्टि से बादशाह ने उन्हें छेड़ा, “बीरबल, जरा यह बताओ कि तुममें और गधे में कितना अंतर है?”
ईर्ष्यालु दरवारियों ने बादशाह का सवाल सुनकर ठहाके लगाने शुरू कर दिए। उधर बीरबल कहाँ चुप रहने वाले थे। उन्होंने चुपचाप अपना सिर नीचे झुका लिया जैसे भूमि की ओर देखते हुए कुछ गणना कर रहे हों।
उनकी मुद्रा बड़ी गम्भीर थी और वे अपने हाथों पर कुछ गिनती कर रहे थे। “क्या गिनती कर रहे हो, बीरबल?”
अकबर ने थोड़ी हँसी के साथ पूछा“मैं अपने और गधे के बीच की दूरी पता करने की कोशिश रहा था मैंने गिनती कर ली है,”
बीरबल ने अपनी दृष्टि अकबर की ओर उठाते हुए कहा, “यह कोई सोलह फीट जान पड़ती है।” इस उत्तर पर अकबर अत्यंत लज्जित हो गए और कुछ देर तक दृष्टि ऊपर न कर सके। दरअसल बीरबल ने अकबर के सिंहासन के सामने खड़े होकर उनके और अपने बीच की दूरी बताई थी। इस प्रकार बीरबल ने बादशाह द्वारा किए गए मजाक को उन्हीं पर पलट दिया।
रेत (Akbar Birbal Story in hindi for kids )
बादशाह अकबर के दरबार का काम चल रहा था तभी एक दरबारी हाथ में शीशे का एक मर्तबान लिए वहां आया।
‘‘क्या है इस मर्तबान में ?’’ पूछा बादशाह ने।
वह बोला, ‘‘इसमें रेत और चीनी का मिश्रण है।’’
‘‘वह किसलिए ?’’ फिर पूछा अकबर ने।
‘‘माफी चाहता हूँ हुजूर,’’ दरबारी बोला, ‘‘हम बीरबल की बुद्धिमानी को परखना चाहते हैं। हम चाहते हैं कि वह रेत से चीनी का दाना-दाना अलग कर दे।’’
बादशाह अब बीरबल से मुखातिब हुए, ‘‘आप देख लो बीरबल, रोज ही तुम्हारे सामने एक नई समस्या रख दी जाती है।’’ वह मुस्कराए और आगे बोले, ‘‘तुम्हें बिना पानी में घोले इस रेत में से चीनी को अलग करना है।’’
‘‘कोई समस्या नहीं जहांपना,’’ बोला बीरबल, ‘‘यह तो मेरे बाएं हाथ का काम है।’’ कहकर बीरबल ने वह मर्तबान उठाया और चल दिया दरबार से बाहर। बाकी दरबारी भी पीछे थे। बीरबल बाग में पहुंचकर रुका और मर्तबान से भरा सारा मिश्रण आम के एक बड़े पेड़ के चारों ओर बिखेर दिया।
‘‘यह तुम क्या कर रहे हो ?’’ एक दरबारी ने पूछा। बीरबल बोला, ‘‘यह तुम्हें कल पता चलेगा।’’
अगले दिन फिर वे सभी उस आम के पेड़ के निकट जा पहुंचे। वहां अब केवल रेत पड़ी थी, चीनी के सारे दाने चीटियां बटोर कर अपने बिलों में पहुंचा चुकी थीं। कुछ चीटियां तो अभी भी चीनी के दाने घसीट कर ले जाती दिखाई दे रही थीं।‘‘लेकिन सारी चीनी कहां चली गई ?’’ पूछा एक दरबारी ने।
‘‘रेत से अलग हो गई।’’ बीरबल ने उसके कान में फुसफुसाते हुए कहा। सभी जोरों से हंस पड़े। बादशाह अकबर को जब बीरबल की चतुराई मालूम हुई तो बोले, ‘‘अब तुम्हें चीनी ढूंढ़नी है तो चीटियों के बिल में जाना होगा।’’
सभी दरबारियों ने जोरदार ठहाका लगाया और बीरबल का गुणगान करने लगे।
धनी आदमी ( birbal ki buddhimani ki kahani )
एक कवि एक धनी आदमी से मिलने गया और उसे कई सुंदर कविताएं। उसे उम्मीद थी कि शायद वह धनवान खुश होकर कुछ ईनाम जरूर देगा। लेकिन वह धनवान भी बहुत कंजूस था, बोला, ‘‘तुम्हारी कविताएं सुनकर दिल खुश हो गया। तुम कल फिर आना, मैं तुम्हें खुश कर दूंगा।’’
‘कल अच्छा ईनाम मिलेगा।’ ऐसा सोचा की करता हुआ वह कवि घर पहुंचा और सो गया। अगले दिन वह फिर उस धनवान की हवेली में गया । धनवान बोला, ‘‘जैसे तुमने मुझे अपनी कविताएं सुनाकर खुश किया था, उसी तरह मैं भी तुमको बुलाकर खुश हूं। तुमने मुझे कल कुछ भी नहीं दिया, इसलिए मैं भी कुछ नहीं दे रहा, हिसाब बराबर हो गया।’’
कवि बहुत निराश हो गया। उसने अपनी आप बीती एक मित्र को कह सुनाई और उस मित्र ने बीरबल को बता दिया। बीरबल ने सुनकर बोला, ‘‘अब जैसा मैं कहता हूं, वैसा करो। तुम उस धनवान से मित्रता करके उसे खाने पर अपने घर बुलाओ। हां, अपने कवि मित्र को भी बुलाना मत भूलना। मैं तो खैर वहां मैंजूद रहूंगा ही।’’
कुछ दिनों बाद बीरबल की योजना के अनुसार कवि के मित्र के घर दोपहर को भोज का कार्यक्रम तय हो गया। नियत समय पर वह धनवान भी आ पहुंचा। उस समय बीरबल, कवि और कुछ अन्य मित्र बातचीत में मशगूल थे। समय गुजरता जा रहा था लेकिन खाने-पीने का कहीं कोई नामोनिशान न था। वे लोग पहले की तरह बातचीत में व्यस्त थे। धनवान की बेचैनी बढ़ती जा रही थी, जब उससे रहा न गया तो बोल ही पड़ा, ‘‘भोजन का समय तो कब का हो गया , क्या हम यहां खाने पर नहीं आए हैं ?’’
‘‘खाना, कैसा खाना ?’’ बीरबल ने पूछा।
धनवान को अब गुस्सा आ गया, ‘‘क्या मतलब है तुम्हारा ? क्या तुमने मुझे यहां खाने पर नहीं बुलाया है ?’’ ‘‘खाने का कोई निमंत्रण नहीं था। यह तो आपको खुश करने के लिए खाने पर आने को कहा गया था।’’ जवाब बीरबल ने दिया। धनवान का गुस्सा सातवें आसमान पर चढ़ गया, क्रोधित स्वर में बोला, ‘‘यह सब क्या बकवास है? इस तरह किसी इज्जतदार आदमी को बेइज्जत करना ठीक बात नहीं है ? तुमने मुझसे धोखा किया है।’’
अब बीरबल हंसता हुआ बोला, ‘‘यदि मैं कहूं कि इसमें कुछ भी गलत नहीं । तुमने इस कवि से यही कहकर धोखा दिया था ना कि कल आना, सो मैंने भी कुछ ऐसा ही किया। तुम जैसे लोगों के साथ ऐसा ही व्यवहार होना चाहिए।’’
धनवान को अब अपनी गलती का आभास हुआ और उसने कवि को अच्छा ईनाम देकर वहां से विदा ली। वहां मौजूद सभी बीरबल को प्रशंसाभरी नजरों से देखने लगे।
मूर्खों की फेहरिस्त की कहानी
बादशाह अकबर घुड़सवारी के इतने शौकीन थे कि पसंद आने पर घोड़े का मुंहमांगा दाम देने को तैयार रहते थे। दूर-दराज के मुल्कों, जैसे – अरब, पर्शिया आदि से घोड़ों के विक्रेता मजबूत व आकर्षक घोड़े लेकर दरबार में आया करते थे।
बादशाह अपने व्यक्तिगत इस्तेमाल के लिए चुने गए घोड़े की अच्छी कीमत दिया करते थे। जो घोड़े बादशाह की रुचि के नहीं होते थे उन्हें सेना के लिए खरीद लिया जाता था।
बादशाह अकबर के दरबार में घोड़े विक्रेताओं का अच्छा व्यापार होता था।
एक दिन घोड़ों का एक नया विक्रेता दरबार में आया। अन्य व्यापारी भी उसे नहीं जानते थे। उसने दो बेहद आकर्षक घोड़े बादशाह को बेचे और कहा कि वह ठीक ऐसे ही सौ घोड़े और लाकर दे सकता है, बशर्ते उसे आधी कीमत पेशगी दे दी जाए।
बादशाह को चूंकि घोड़े बहुत पसंद आए थे, सो वैसे ही सौ और घोड़े लेने का तुरंत मन बना लिया।
बादशाह ने अपने खजांची को बुलाकर व्यापारी को आधी रकम अदा करने को कहा।
खजांची उस व्यापारी को लेकर खजाने की ओर चल दिया। लेकिन किसी को भी यह उचित नहीं लगा कि बादशाह ने एक अनजान व्यापारी को इतनी बड़ी रकम बतौर पेशगी दे दी। लेकिन विरोध जताने की हिम्मत किसी के पास न थी।
खजांची चाहते थे कि बीरबल यह मामला उठाए।
बीरबल भी इस सौदे से खुश न था। वह बोला, ‘हुजूर! कल मुझे आपने शहर भर के मूर्खों की सूची बनाने को कहा था। मुझे खेद है कि उस सूची में आपका नाम सबसे ऊपर है।’
बादशाह अकबर का चेहरा मारे गुस्से के सुर्ख हो गया। उन्हें लगा कि बीरबल ने भरे दरबार में विदेशी मेहमानों के सामने उनका अपमान किया है।
गुस्से से भरे बादशाह चिल्लाए, ‘तुम्हारी हिम्मत कैसे हुई हमें मूर्ख बताने की?’
‘क्षमा करें बादशाह सलामत।’ बीरबल अपना सिर झुकाते हुए सम्मानित लहजे में बोला, आप चाहें तो मेरा सर कलम करवा दें, यदि आपके कहने पर तैयार की गई मूर्खों की फेहरिस्त में आपका नाम सबसे ऊपर रखना आपको गलत लगे।’
दरबार में इतना सन्नाटा छा गया कि सुई गिरे तो आवाज सुनाई दे जाए।
अब बादशाह अकबर अपना सीधा हाथ उठाए, तर्जनी को बीरबल की ओर ताने आगे बढ़े। दरबार में मौजूद सभी लोगों की सांस जैसे थम-सी गई थी। उत्सुक्तावश व उत्तेजना सभी के चेहरों पर नृत्य कर रही थी। उन्हें लगा कि बादशाह सलामत बीरबल का सिर धड़ से अलग कर देंगे। इससे पहले किसी की इतनी हिम्मत न हुई थी कि बादशाह को मूर्ख कहे।
लेकिन बादशाह ने अपना हाथ बीरबल के कंधे पर रख दिया। वह कारण जानना चाहते थे। बीरबल समझ गया कि बादशाह क्या चाहते हैं। वह बोला, ‘आपने घोड़ों के ऐसे व्यापारी को बिना सोचे-समझे एक मोटी रकम पेशगी दे दी, जिसका अता-पता भी कोई नहीं जानता। वह आपको धोखा भी दे सकता है। इसलिए मूर्खों की सूची में आपका नाम सबसे ऊपर है। (Akbar Birbal story in hindi)
यह भी हो सकता है कि अब वह व्यापारी वापस ही न लौटे। वह किसी अन्य देश में जाकर बस जाएगा और आपको ढूंढ़े नहीं मिलेगा। किसी से कोई भी सौदा करने के पूर्व उसके बारे में जानकारी तो होनी ही चाहिए।
उस व्यापारी ने आपको मात्र दो घोड़े बेचे और आप इतने मोहित हो गए कि मोटी रकम बिना उसको जाने-पहचाने ही दे दी। यही कारण है बस।’
‘तुरंत खजाने में जाओ और रकम की अदायगी रुकवा दो।’ बादशाह अकबर ने तुरंत अपने एक सेवक को दौड़ाया।
बीरबल बोला, ‘अब आपका नाम उस सूची में नहीं रहेगा।’
बादशाह अकबर कुछ क्षण तो बीरबल को घूरते रहे, फिर अपनी दृष्टि दरबारियों पर केन्द्रित कर ठहाका लगाकर हंस पड़े। सभी लोगों ने राहत की सांस ली कि बादशाह को अपनी गलती का अहसास हो गया था।
हंसी में दरबारियों ने भी साथ दिया और बीरबल की चतुराई की एक स्वर से प्रशंसा की।