राजनीतिक व्यंग्य
व्यंग्य,धमकीपुरम ,दिल्ली: आजकल के आम भाषा में हिंदी डायलाग का प्रयोग चलन में आया है. हालांकि सांस्कृतिक विभाग के कई महानुभाव का कहना है की ठोक देंगे जैसे हिंदी डायलाग की प्रथा हड़प्पा काल से ही है.
उस समय लोग लकड़ियों से ठोका करते थे फिर 1000 ईसा पूर्व लोहे का खोज होते ही इंसान जानवरों, जंगलों को ठोकने लगा.
17 वीं शताब्दी में ठोक देने की संस्कृति काफी प्रबल हुई जब पूरे यूरोप में एक औद्योगिक क्रांति आई और लोगों ने कई औद्योगिक इकाइयों में धातु को ठोक के कई आविष्कार किए.
1950 और 60 के दशक में नेहरू जी ने पूरे भारत में PSU ठोक डाला. यह उनकी ठोक दृष्टि का ही परिणाम है कि आज कई औद्योगिक इकाइयां अपने अपने इलाके में ठुक ठुकाने लगी .
हिंदी डायलाग के बढ़ते प्रचलन से राजनितिक समाज भी अछूता नहीं रहा है। कभी गब्बर सिंह ,कभी घर में घुसना,कभी हाउ इस द जोश जैसे डायलाग अब आम बात हो गयी है .
हास्य व्यंग्य
कुछ लोग ठोकने की कला को अपनी दबंगई और दूसरों के दिलों में भय डालने के लिए भी प्रयोग करते हैं. कुछ दिन पहले मुख्यमंत्री ने पुलिस वालों को गुंडों को ठोकने की हिदायत दी थी.
पुलिस अधिकारी इस हिदायत को दिल पर लेते हुए,थोड़ा इमोशनल हुए और कई लोगों की ठुकाई हो गई.
इसी क्रम में सत्ताधारी पार्टियों के कई नेता ठोक विधि का उपयोग करते हुए आजकल लोगों को प्यार से पूचकार रहे हैं. उनका कहना है बेटा मान जाओ वरना ठोका जाओगे.
लोग इसे सतयुग का आरंभ कॉल मान रहे हैं. ठोक देंगे से भाईचारे की एक खुसबू आती है और जीवन के बंधनो से दुसरो को आजाद करने का सुकर्म का मौका मिलता है
हिंदी डायलाग और हिंदी फिल्मे का प्रभाव भारतीय समाज में हमेशा से रहा है और इसका जादू युवको से निकल कर बुजुर्ग नेताओ तक पहुंच गया है