Short Moral Story In Hindi
प्राचीन समय की बात है जब एक गुरु अपने शिष्यों के साथ कहीं दूर जा रहे थे। रास्ता काफी लंबा था और चलते – चलते सभी लोग थक से गए थे। सभी विश्राम करना चाहते हुए भी विश्राम नहीं कर पा रहे थे. अगर विश्राम करते तो गंतव्य स्थल पर पहुंचने में अधिक रात हो जाती। इसलिए वह लोग निरंतर चल रहे थे। रास्ते में एक छोटा नाला आया जिस को पार करने के लिए सभी को लंबी छलांग लगानी थी।
सभी लोगों ने लंबी छलांग लगाकर नाले को पार कर लिया । लेकिन छलांग लगाते वक़्त गुरुजी का कमंडल उस नाले में गिर गया। सभी शिष्य परेशान हुए एक रणधीर नाम का शिष्य शिष्य कमंडल निकालने के लिए सफाई कर्मचारी को ढूंढने चला गया। अन्य शिष्य बैठकर चिंता करने लगे , योजना बनाए लगे आखिर यह कमंडल कैसे निकाला जाए ?
गुरु जी परेशान से दिखने लगे क्यूंकि उनको अपने शिष्यों की शिक्षा पर संकोच होने लगा। गुरुजी ने सभी को स्वावलंबन का पाठ पढ़ाया था। उनकी सिख पर कोई भी शिष्य वास्तविक जीवन में अमल नहीं कर रहा था । अंत तक वास्तव में कोई भी उस कार्य को करने के लिए अग्रसर नहीं हुआ , ऐसा देखकर गुरु जी काफी विचलित हुए। एक शिष्य राहुल उठा और उसने नाले में हाथ लगा कर देखा , किंतु कमंडल दिखाई नहीं दिया क्योंकि वह नाले के तह में जा पहुंचा था । तभी मदन ने अपने कपड़े संभालते हुए नाले में उतरा और तुरंत कमंडल लेकर ऊपर आ गया।
गुरु जी ने अपने शिष्य मदन की खूब प्रशंसा की और भरपूर सराहना की उसने तुरंत कार्य को अंजाम दिया और गुरु द्वारा पढ़ाए गए पाठ पर कार्य किया। तभी शिष्य गोपाल जो सफाई कर्मचारी को ढूंढने गया था वह भी आ पहुंचा , उसे अपनी गलती का आभास हो गया था।
Moral of the story in hindi
कोई भी काम छोटा या बड़ा नहीं होता है , अपना काम स्वयं करना चाहिए। किसी भी संकट में होने के बावजूद भी दूसरे व्यक्तियों से मदद कम से कम लेना चाहिए।