सफलता क्या है? | Safalta Kya Hai

Safalta Kya Hai

सफलता किसी व्यक्ति की अभिलाषा,लालसा, इच्छा है। प्रत्येक व्यक्ति सफल माने जाने वाली शख्सियत के जैसा होना चाहता है। सफलता की परिभाषा अलग-अलग व्यक्ति के लिए अलग है। यह व्यक्ति की सोच, उसकी मेहनत ,काबिलियत , उसके आत्मबल, उसकी संकल्प शक्ति के साथ, संस्कारों पर भी निर्भर है।

यहाँ सभी लोग अपने सपने और लक्ष्य का या उस बात का पीछा कर रहे हैं जो उन्हें लगता है उनके लिए जरुरी है, या जिसके मिल जाने से उनके जीवन में कुछ बहुत बेहतर हो जायेगा, उन्हें संतुष्टि, तृप्ति या सार्थकता महसूस होगी, इस जगह या स्थिति को पा लेना ही उनके लिए सफलता का पैमाना है, यह मानव स्वभाव है, और हम सभी इससे बंधे हुए जीते हैं।

हम जिस दुनिया और समय में जीते हैं वहां कुछ बातें प्रचलित हैं, घर परिवार से लेकर सामाजिक व्यवस्था तक, यहाँ कुछ मानक और प्रतिमान निश्चित कर दिए गए हैं प्रत्येक व्यक्ति के लिए की उसे क्या करना चाहिए, क्यूँ करना चाहिए, उसकी सार्थकता क्या है जैसे की पढाई करना, नौकरी या व्यापार पा लेना, शादी कर लेना, घर बना लेना, कार, बैंक बैलेंस, सामाजिक प्रतिष्ठा प्राप्त करने के यह उपाय हैं, लोग इन स्थितियों को पाने के लिए जीवन भर संघर्ष करते हैं, अब इनमें से कुछ इस दुनिया में जीने और कार्य करने के लिए निश्चित ही बेहद जरुरी हैं, इनके बगैर आप एक सुखद और सम्मानपूर्वक जीवन नहीं जी सकेंगे।

किसी को धन चाहिए, किसी को अपने प्रेमी या प्रेमिका चाहिए, किसी को धन वैभव और पद चाहिए, किसी को किसी और लक्ष्य के मिल जाने की आस है।

ऐसा बहुत बार देखने को मिलता है कि दूसरों को सफल दिखाई देने वाले व्यक्ति, अन्दर से बहुत परेशान एवं टूटे हुए होते हैं। आर्थिक सम्पन्नता को सफलता का मापदण्ड माना जाना, एक बड़ी गलती है, लेकिन मानसिक सन्तुष्टि को सफलता से अवश्य जोड़ा जा सकता है।

आजकल के दौर में जब युवा सफलता मतलब पैसा या नाम कमाने को देखते हैं या दुनिया में दिखाया जाता है तो कही ना कही ये आर्थिक बदहाली और समय का दोष है। आजकल के समयकाल में पैसा कामना अंतिम ध्येय बताया जाता है जो कि अक्सर गलत होता है।

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सभी अपनी स्थिति से एक दुसरे बिंदु या स्थिति की ओर गति कर रहे हैं, और अपना जीवन, शक्ति, उर्जा और साधन, समय इसमें लगा रहे हैं, और जब वो अपने लक्ष्य पा लेते हैं तो उन्हें और दुसरे लोगों को लगता है वो सफल हैं, यही इस दुनिया में प्रचलित है।

प्रत्येक व्यक्ति जीवन में सफल होना चाहता है। हर व्यक्ति चाहता है उसे सम्मान मिले, उसके पास पर्याप्त धन हो, रहने के लिए मकान हो एवं अपने मित्रों में, समाज में उसको प्रतिष्ठा मिले। हर व्यक्ति की अभिलाषा होती है वह जो भी कार्य करे, उसमें उसे सफलता मिले। सफलता का आलिंगन हर व्यक्ति करना चाहता है।

जब वो अपने निर्धारित लक्ष्य तक पहुँच जाते हैं तो उन्हें और उन जैसे लक्ष्य और कामना रखने वाले सभी लोग समझते हैं की वो व्यक्ति सफल है क्यूंकि उसने उनके निर्धारित लक्ष्य, वस्तु, स्थिति, परिणाम को प्राप्त कर लिया है

तो यह सब हासिल कर लेना सफलता है इसके अलावा कुछ लोग किसी कार्य विशेष क्षेत्र विशेष, कला या हुनर में पारंगत होने को सफलता समझते है, किसी खास पद या पुरस्कार की प्राप्ति को सफलता समझते हैं और इस दिशा में कार्यरत रहते हैं जैसे खिलाडी, संगीत, नृत्य, चित्रकारी और अन्य विविध कलाओं और रचनात्मक गतिविधियों में संलग्न व्यक्ति और संस्थाएं।

इस तरह सारा जीवन और स्तिथि जो है उससे कुछ और बेहतर होने के लिए प्रयासरत है, गतिमान है, सभी की आकांक्षा विस्तार और अधिक पा लेने की है, सब लोग कुछ जोड़ना चाहते हैं, अपने आप के साथ, ताकि स्वयं को अधिक विकसित, विस्तृत और शक्तिशाली अनुभव कर सकें, यह हर जीव की आतंरिक आकांक्षा है, और सभी अपनी बुद्धि, शक्ति और सामर्थ्य से इस दिशा में अग्रसर हैं।

कुछ लोग अपने उद्देश्यों में सफल हो जाते हैं और कुछ लोग अपने चाहे हुए परिणाम प्राप्त नहीं कर पाते हैं, तो एक को सफल और दुसरे को असफल होने का लेबल लगा दिया जाता है।

जो लोग अपने लक्ष्य को प्राप्त कर लेते हैं वो सदा इससे खुश संतुष्ट और तृप्त रहते हैं। ऐसा सोचना गलत है। क्या इसके बाद उनके जीवन में कुछ और हासिल करने की चाहत बचती नहीं है क्या ?

जब व्यक्ति एक लक्ष्य को प्राप्त कर लेता है तो, उसी समय वह उसके लिए व्यर्थ हो जाता है, क्यूंकि उसे उससे आगे की बात दिखाई पड़ने लगती है, जैसे एक व्यक्ति बेरोजगारी और निर्धनता की स्थिति से 20000 रूपये प्रति माह कमाने लग जाये, कुछ समय में तो उसने एक लक्ष्य अर्जित कर लिया, लेकिन इस अवस्था को प्राप्त करते ही उसे लगने लगता है की यह तो 20000 है, उसे 40000 रूपये कमाना चाहिए।

जीवन में सफलता क्या है ?

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इस तरह यह अंतहीन सिलसिला चलता रहता है, क्यूंकि मनुष्य न चाहते हुए भी जो कुछ भी उसने इस जगत से पा लिया है उससे संतुष्ट नहीं रह पाता, जितना वो यहाँ पाता है उतनी उसकी प्यास बढ़ जाती है और एक खालीपन और सूनापन उसके जीवन में सदा भरा हुआ रहता है।

जीवन का स्वभाव है विस्तार और फैलाव, मनुष्य की सारी गति, प्रगति का लक्ष्य अनंत विस्तार को उपलब्ध करना है, इतना की फिर कुछ भी पाने को शेष नहीं रह जाये, यही प्यास सभी के अंदर है, एक छोटे से कीड़े से लेकर सबसे शक्तिशाली व्यक्ति तक,  इसलिए मनुष्य एक स्थिति से दूसरी स्थिति और अनुभव की ओर गति करता रहता है और उसका जीवन समाप्त हो जाता है

धरती पे सभी इंसानो की यही ईक्षा है की उसे वो मिल जाये जिसके बाद उसे किसी चीज़ की जरुरत न रहे।

अब सवाल यह है की क्या इस दुनिया में कोई भी सम्पति, पद, सम्मान, रिश्ता, या कुछ भी ऐसा है जो मनुष्य की इस प्यास और खोज की भूख को पूरा कर सकता है ?

और क्या यह सब मिल जाने के बात भी मनुष्य की प्यास और चाहत ख़त्म हो जाती है, इसे जाने बिना और पाए बिना कोई भी बात, कोई भी दुनियावी उपलब्धि आपको सफल नहीं बना सकती है, आपकी खोज और प्यास मिट नहीं सकती है।

आज दुनिया में यही सभी किस्म की उपलब्धियों, सफलता और समृद्धि पाकर भी लोग बीमार, हताश, और दुखी हैं, निश्चित ही यह सभी उपलब्धियां, सामान, सुख भोग, पद, प्रतिष्ठा उन्हें समस्याओं और दुखों से मुक्त नहीं कर पा रहे है, बल्कि इन सभी चीजों से उसमें वृद्धि हो रही है, तो फिर हम इसे सफ़लता कैसे कह सकते हैं

सभी लोग अपने विकास के विभिन्न चरणों में है, कोई सीख रहा है, कोई बेहतर हो चुका है और उसकी भव्य रूप में जाहिर करने में समर्थ हो गया है। जैसे की मोदी के जीवन को ले लीजिये। पहले वह चाय बनाते थे फिर वह अपने आरएसएस की संख्याओं में थे वहां पर उन्होंने कुछ न कुछ सीखा होगा ,देखा होगा और फिर जैसे जैसी जिम्मेदारियां मिलते गयी उनको निभाते चले गए। आज से चालीस साल पहले उन्होंने शायद ही सोचा होगा की वो प्रधान मंत्री बन जायेंगे। लेकिन उस समय अपने दिए गए कार्यो को करना ही सफलता का एक पैमाना होगा।

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और आज जब वह इतने लोकप्रिय और ताकतवर हैं तो क्या वो सफलता के अंतिम पायदान पर है ?

धरती पे सभी इंसानो की यही ईक्षा है की उसे वो मिल जाये जिसके बाद उसे किसी चीज़ की जरुरत न रहे।

अब सवाल यह है की क्या इस दुनिया में कोई भी पदार्थ, सम्पति, पद, सम्मान, रिश्ता, या कुछ भी ऐसा है जो मनुष्य की इस अंतहीन प्यास और खोज को तृप्त या पूरा कर सकता है ?

और क्या यह सब मिल जाने के बात भी मनुष्य की प्यास और चाहत ख़त्म हो जाती है, इसे जाने बिना और पाए बिना कोई भी बात, कोई भी दुनियावी उपलब्धि आपको सफल नहीं बना सकती है, आपकी खोज और प्यास मिट नहीं सकती है।

आज दुनिया में यही सभी किस्म की उपलब्धियों, सफलता और समृद्धि पाकर भी लोग अत्यंत बीमार, हताश, और दुखी हैं, निश्चित ही यह सभी उपलब्धियां, सामान, सुख भोग, पद, प्रतिष्ठा उन्हें समस्याओं और दुखों से मुक्त नहीं कर पा रहे है, बल्कि इन सभी चीजों से उसमें वृद्धि हो रही है, तो फिर हम इसे सफ़लता कैसे कह सकते हैं

आज अमरीका ,यूरोप और अन्य बेहद समृद्ध और विकसित देशों में मनोरोगियों की संख्या सबसे अधिक है, उनकी 60 से 70% आबादी जिनमें 14 वर्ष की उम्र के बच्चे भी शामिल हैं मनोरोग से ग्रस्त हैं, बिना दवा लिए वो सो नहीं सकते और न ही सामान्य व्यव्हार कर सकते हैं, क्या यह सफलता है ?

हाल के दिनों में सुशांत सिंह राजपूत नामक प्रसिद्द कलाकार ने अपना जीवन समाप्त कर लिया। आजकल के पैमानों के हिसाब से वह एक सफल व्यक्ति थे फिर भी मनोरोग के घिरे थे। उसका इलाज़ करवा रहे थे। जो पूरी दुनिआ को सफल दिख रहा था वह कही न कही अपने आप को अपने अंदर असफल मान रहा था या किसी चीज़ का डर सत्ता रहा था। वही कारण से उनको मनोरोग की बिमारी हुई होगी। अच्छी बात ये थी की वह इसका इलाज़ करवा रहे थे लेकिन फिर भी अपने इस बीमारी को जित नहीं पाए। तो क्या हम उन्हें असफल मानेंगे ?

हमारे देश में 40% आबादी को दोनों वक़्त का भोजन उपलब्ध नहीं है, क्या यह हमारे समाज और समुदाय की सफलता है? इस सवाल का जवाब ही वास्तविक सफलता है, जिसे हमारी संस्कृति ने सबसे अधिक मूल्य दिया है, यह सबसे बड़ा सवाल है, जिसका जवाब हमे खोजना है, इसकी प्राप्ति ही हर किस्म की बेचैनी, भय, दौड़ और संघर्ष से मुक्ति है, और सवाल यह है की हमारा वास्तविक स्वरुप क्या है, और हम कैसे इसे जान सकते हैं और इसे प्रकट कर सकते हैं।

कोई संत, महात्मा,अत्यंत साधारण मनुष्य हो या शक्ति, पद और अहंकार के नशे में चूर, कोई अत्याचारी, सभी को एक ऐसी चीज़ की तलाश है जिसे पाने के बाद उनकी कोई चाह न रह जाये, वो सारे, दुःख, अभावों और भयों से मुक्त हो जाएँ, जब तक यह न हो जाये तब तक सफलता का कोई भी अर्थ नहीं है।

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इसी एक चाहत को पूरा करने के लिए इस पूरी पृथ्वी पर लोग हर किस्म के कार्यों को अंजाम दे रहे हैं, बिना इस बात को समझे की वो क्या चाहते हैं और वो उन्हें कैसे मिलेगा, बस सभी पर कुछ करने का बहुत सवार है, और सभी लोग उस भूत को पकड़ने के लिए चले जा रहे हैं, यह जाने समझे बगैर की यह उन्हें जाना कहाँ है और यह राष्ट वहाँ ले जायेगा की नहीं

एक आदमी की चाहत कुछ भी करके उन चीज़ों को हासिल करना होता है जिन्हें वो अपनी चाहत बना लेता है, वह आदमी उसके लिया धन बल इकठा करता है उसके लिए लड़ता है सबसे दोस्ती दुश्मनी करते हुए, उसकी फिक्र करते हुए मर जाता है, कुछ लोगों के लिए सब कुछ खो कर, खुद को पाना सबसे बड़ा लक्ष्य होता है, वो इसमें ही व्यस्त रहते हैं अब आप कैसे तय करेंगे कि कौन सफल है और कौन असफल?

जो दुनिया और दुनियादारी में व्यस्त है, उसके लिए यहां की सब बातें कीमती है, जो इस दुनिया से अलग है उसके लिए यह सब मिट्टी है। एक कि नजर में दूसरा असफल है, बेवकूफ है, आप क्या कहेंगे उस व्यक्ति के लिए लिए, और कुछ लोग इसी मृग मरीचिका में फंसकर नष्ट हो जाते है। तो यह तो साफ़ है की सब लोग ,हर इंसान किसी एक चीज़ की तलाश में है, जिसे पाकर उनके सारे भाव, इच्छाएं और भटकन समाप्त हो जाये, तो वो क्या है, उसकी प्राप्ति ही वास्तविक सफलता है, और वही मानव जीवन का परम लक्ष्य है।

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जिसे खुद की खुद के नजर में अपनी पहचान नहीं है जो यह नहीं जानता कि उसके जीने का मकसद क्या है,वो असफल है

यह बहुत मायने नहीं रखता की लोग आपके बारे में क्या समझते और कहते हैं, यह मायने ज्यादा रखता है की आप अपने बारे में वास्तविक रूप से क्या जानते और समझते हैं, और क्या आप उस दिशा में गतिशील हैं जो आपको अपने आप से जोड़ दे और स्वयं के वास्तविक स्वरुप से मिलने में सहयोग दे

क्या आप एक चेतना से भरा हुआ जीवन जी रहे है? क्या आपका जीवन आपके लिए और आपके आसपास सभी लोगों के लिए आनंद और ज्ञान की सृष्टि कर रहा है? क्या आप जो कर रहे हैं वो आपको ज्यादा खुश , मुक्त और गुणवान बना रहा है? यदि हां तो इसमें और वृद्धि कीजिये और नहीं, तो रुक कर कर सही दिशा और मार्गदर्शन प्राप्त कीजिये।