प्रकृति पर छोटी कविता ( Nature Poems in Hindi )

प्रकृति ने हमारे जीवन में हमें अनेक चीज़े दी है जो बिलकुल मुफ्त है जैसे की पेड़, हवा, पानी, ऑक्सीजन जिससे की मानव जीवन जीने में बहुत आसानी होती है | प्रकृति हमारे लिए बहुत महत्त्व की सम्पदा है इससे हमारा जीवन आसान बन जाता है इसीलिए हमें हमारे स्कूल व कॉलेजों में कक्षा Class 1, Class 2, Class 3, Class 4, Class 5, Class 6, Class 7, Class 8, Class 9, Class 10, Class 11, Class 12 के बच्चो की प्रकृति के ऊपर कविताएँ पढ़ाई जाती है | अगर आप उन कविताओं के बारे में जानकारी पाना चाहते है तो इसके लिए हमारे द्वारा बताई गयी इस जानकारी को पढ़ सकते है |

हिंदी कविता प्रकृति

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Short Poem on Nature in Hindi

हे ईश्वर तेरी बनाई यह धरती , कितनी ही सुन्दर
नए तरह – तरह के हैं अनेक रंग !
कोई पिली कहता ,तो कोई बैंगनी , तो कोई लाल
तपती गर्मी में है धरती हे भगवान् , तुम्हारा चन्दन जैसे व्रिक्स
सीतल हवा बहते खुशी के त्यौहार पर
पूजा के वक़्त पर हे भगवान् , तुम्हारा पीपल ही
तुम्हारा रूप बनता तुम्हारे ही रंगो भरे पंछी
नील अम्बर को सुनेहरा बनातेतेरे चौपाये किसान के साथी बनते
हे भगवान् तुम्हारी यह धरी बड़ी ही मीठी

POEM IN HINDI ON NATURE FOR CLASS 7

हे ईस्वर तूने यह धरती बनाई , कितनी ही सुन्दर
नए – नए और तरह – तरह के
एक नही अनेको रंग सजाई !
कोई गुलाबी कहता ,
तो कोई बैंगनी , तो कोई लाल
तपती गर्मी में
हे ईश्वर , तुम्हारा चन्दन जैसे व्रिक्स
सीतल हवा बहाते
खुशी के पर्व पर
पूजा के वक़्त पर
हे ईस्वर , बड़ा पीपल ही
तुम्हारा रूप बनता
तुम्हारे ही रंगो भरे पंछी
नील अम्बर को सुनेहरा बनाते
तेरे चौपाये किसान के साथी बनते
हे ईस्वर तुम्हारी यह धरी बड़ी ही मीठी

प्रकृति पर कविता हिंदी में

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कलयुग में अपराध का
बढ़ा हुआ इतना प्रकोप
आज फिर से काँप उठी है
अपनी धरती माता की कोख !!
समय समय पर प्रकृति को
देती रही कोई न कोई चोट
लालच में अँधा हुआ
मानव को नही रहा कोई खौफ !!
कही बाढ़, कही पर सूखा
कभी महामारी का प्रकोप
यदा कदा धरती हिलती
फिर भूकम्प से मरते बहुत सारे लोग !!
मंदिर मस्जिद और गुरूद्वारे
चढ़ गए भेट राजनितिक के लोभ
वन सम्पदा, नदी पहाड़, झरने
इनको मिटा रहा इंसान हर रोज !!
सबको अपनी चाह लगी है
नहीं रहा प्रकृति का अब शौक
“धर्म” करे जब बाते जनमानस की
दुनिया वालो को लगता है जोक !!
कलयुग में अपराध का
बढ़ा अब इतना प्रकोप
आज फिर से काँप उठी
देखो धरती माता की कोख !!

हिंदी कविता प्रकृति

POEM BASED ON NATURE IN HINDI


बागो में जब बहार आने लगे
पंक्षी अपना गीत सुनाने लगे
कलियों में निखार छाने लगे
फूलों पर भँवरे मंडराने लगे
जान लेना वसंत आ गया… रंग बसंती छा गया !!
खेतो में फसल पकने लगे
खेत खलिहान लहलाने लगे
डाली पे फूल मुस्काने लगे
चारो और खुशबु फैलाने लगे
मान लेना वसंत आ गया… रंग बसंती छा गया !!
आम पे बौर जब आने लगे
फूल मधु से भर जाने लगे
भीनी भीनी सुगंध आने लगे
तितलियाँ कहीं कहीं मंडराने लगे
मान लेना वसंत आ गया… रंग बसंती छा गया !!

सरसो पे पीले फूल दिखने लगे
वृक्षों में नई कोंपले खिलने लगे
प्रकृति सौंदर्य छटा बिखरने लगे
वायु भी सुहानी जब बहने लगे
मान लेना वसंत आ गया… रंग बसंती छा गया !!
धूप जब मीठी लगने लगे
सर्दी कुछ कम लगने लगे
मौसम में बहार आने लगे
ऋतु दिल को लुभाने लगे
मान लेना वसंत आ गया… रंग बसंती छा गया !!
चाँद भी जब खिड़की से झाकने लगे
चुनरी सितारों की झिलमिलाने लगे
योवन जब फाग गीत गुनगुनाने लगे
चेहरों पर रंग अबीर गुलाल छाने लगे
मान लेना वसंत आ गया… रंग बसंती छा गया !!

प्रकृति सौंदर्य पर कविता


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लो आ गया फिर से हँसी मौसम बसंत का
शुरुआत है बस ये निष्ठुर जाड़े के अंत का
गर्मी तो अभी दूर है वर्षा ना आएगी
फूलों की महक हर दिशा में फ़ैल जाएगी
पेड़ों में नई पत्तियाँ इठला के फूटेंगी
प्रेम की खातिर सभी सीमाएं टूटेंगी
सरसों के पीले खेत ऐसे लहलहाएंगे
सुख के पल जैसे अब कहीं ना जाएंगे
आकाश में उड़ती हुई पतंग ये कहे
डोरी से मेरा मेल है आदि अनंत का
लो आ गया फिर से हँसी मौसम बसंत का
शुरुआत है बस ये निष्ठुर जाड़े के अंत का
ज्ञान की देवी को भी मौसम है ये पसंद
वातवरण में गूंजते है उनकी स्तुति के छंद
स्वर गूंजता है जब मधुर वीणा की तान का
भाग्य ही खुल जाता है हर इक इंसान का
माता के श्वेत वस्त्र यही तो कामना करें
विश्व में इस ऋतु के जैसी सुख शांति रहे
जिसपे भी हो जाए माँ सरस्वती की कृपा
चेहरे पे ओज आ जाता है जैसे एक संत का
लो आ गया फिर से हँसी मौसम बसंत का
शुरुआत है बस ये निष्ठुर जाड़े के अंत का