मुखिया ( Top Moral story in hindi for class 5 )
मुखिया और भोलू की चतुराई
कई साल पहले एक रामपुर नाम के गांव में आदित्यराव नाम का एक मुखिया रहता था। वह बहुत ही कंजूस था और लोगों की भलाई के लिए पैसा नहीं देता था । एक बार गांव में बहुत सूखा पड़ गया। लोगों को पिने के पानी के लिए बहुत दिक्कत हो रही थी।
लोग दूसरे गांव से पानी लाकर कुछ दिनों तक अपना काम चलाते रहे लेकिन उसके बाद उन्होंने भी पानी देने से मना कर दिया। इसके बाद गांव के लोग मुखिया के पास गए और उसको बोला आप गांव में एक कुआँ खुदवा दो जिससे गांव के लोग सूखे की स्थिति में उससे पानी पी सके।
मुखिया ने कहा कुआँ खोदने के लिए बहुत पैसे लगेंगे इतने पैसे नहीं है। । गांव में भोलू नाम का एक चतुर लड़का रहता था। उसने गांव वालों से कहा हम गांव वालों को ही मिलकर कुआँ खोदना चाहिए।
उसकी इस बात को सब गांव वाले मान गए। सभी गांव वालों ने पैसे इकट्ठे किये और कुआँ खुदाई का काम शुरू किया। कुछ दिन कुआँ खोदने के बाद नीचे कुँए में एक बहुत बड़ा पत्थर आ गया। जिसके कारण कुआँ खोदने का काम रुक गया।
पत्थर को तोड़ने के लिए और भी पैसों की जरुरत थी लेकिन जमा किये गए पैसे उसके लिए पर्याप्त नहीं थे। भोलू ने गाँव वालों से कहा यह काम अब तुम मुझ पर छोड़ दो। रमन ने रात को जब कोई नहीं था तब आकर कुँए में 5 – 6 पीपे तेल के उस कुँए में डाल दिए।
सुबह जब गाँव के लोगों ने कुँए में तेल देखा तो पुरे गाँव में यह बात फ़ैल गयी की कुँए में से तेल निकल रहा है। जब गांव के मुखिया को यह बात पता लगी की कुँए में से तेल निकल रहा है तो उसने लालच में गाँव वालों से कहा इस पत्थर को मै तुड़वा देता हूँ और कुआँ मै ही खुदवा देता हूँ।
इसके बाद उसने बाक़ी कुआँ खुदवाना चालू किया। कुछ दिनों में पूरा कुआँ खुद गया। मुखिया इसमें से तेल निकलने की उम्मीद कर रहा था लेकिन कुँए में से पानी निकलने लगा। सब गाँव वाले पानी को पाकर बहुत खुश हुए।
मुखिया को पता चल गया की किसी ने उसको बेवकूफ बनाया है। इस तरह भोलू की चतुराई से कुआँ खुद गया।
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किसान और भालू ( Hindi Moral Story for class 5 )
Moral stories in Hindi for class 5
कई साल पहले एक किसान आलू बोने के लिए जंगल गया। वह जब बीज बो रहा था तब वहाँ एक भालू आ गया। भालू ने कहा, “किसान, मैं तुम्हारी हड्डी-पसली तोड़ डालूंगा।”
“नहीं . ऐसा नहीं करो,भालू भाई । इसकी बजाय चलो मिलकर आलू बोएँ। मैं आलू के जड़ें ले लूँगा और तुम्हें उसके पत्ते दे दूंगा।”
भालू बोला,“ठीक है। अगर धोखा दोगे, तो फिर कभी भूलकर भी जंगल में पैर नहीं रखना वरना हड्डी पसली तोड़ दूंगा ।”
कुछ समय बाद खूब बड़े-बड़े आलू पैदा हुए। पतझड़ में किसान उन्हें निकालने के लिए आया। उसी वक्त भालू भी जंगल से निकलकर सामने आ गया और बोला,“किसान, आओ, आलू की फसल बाँट लें। मेरा हिस्सा मुझे दे दो।”
“अच्छी बात है, बाँट लेते हैं, प्यारे भालू! ये रहे तुम्हारे पत्ते और ये रही मेरी जड़ें।” किसान ने भालु को सारे पत्ते दे दिए और आलुओं को घोड़ा-गाड़ी में लादकर बेचने चल दिया।
रास्ते में भालू फिर मिला। “किसान तुम कहाँ जा रहे हो ?” भालू ने पूछा। “प्यारे भालू, मैं जड़ें बेचने के लिए शहर जा रहा हूँ।” किसान ने जवाब दिया। “एक जड़ तो दो, मैं चखकर देखू ।” भालू बोला।
किसान ने उसे एक आलू दिया। भालू ने उसे खाया और गुस्से से गरजते हुए बोला, “तुमने मुझे धोखा दिया है । अब तुम जंगल में नहीं आना, नहीं तो हड्डी-पसली तोड़ दूंगा।” अगले साल किसान ने उसी जगह पर गेहूँ बोया।
वह फसल काटने आया, तो भालू को वहाँ खड़ा पाया। “अब तू मुझे धोखा नहीं दे पाओगे । दे मेरा हिस्सा”, भालू बोला। किसान बोला,“ऐसा ही सही। प्यारे भालू, तुम ले लो जड़ें और मैं पत्ते ही ले लेता हूँ।”
दोनों ने फसल बटोरी। किसान ने भालू को जड़ें दे दी और गेहूँ को घोड़ा-गाड़ी में लादकर घर ले गया।
भालू जड़ों को चबाता रहा, मगर चबा न पाया। वह किसान से बेहद नाराज़ हो गया।
नैतिक सीख
किसान ने जैसे उस भालू के सामने अक्ल से काम लिया। ठीक उसी तरह हमें भी परेशानी अगर जीवन में आये तो उस किसान की तरह शक्ति के बदले अक्ल से काम लेना चाहिए।