मनु का जीवन परिचय | Manu biography in hindi

मनु कौन थे

सनातन धर्म के अनुसार मनु संसार के प्रथम पुरुष थे। मनु का जन्म आज से लगभग 19700 साल पूर्व हुआ था प्रथम मनु का नाम स्वयंभुव मनु था, जिनके संग प्रथम स्त्री थी शतरूपा। ये ‘स्वयं भू’ (अर्थात स्वयं उत्पन्न ; बिना माता-पिता के उत्पन्न) होने के कारण ही स्वयंभू कहलाये। इन्हीं प्रथम पुरुष और प्रथम स्त्री की सन्तानों से संसार के समस्त जनों की उत्पत्ति हुई। मनु की सन्तान होने के कारण वे मानव या मनुष्य कहलाए। स्वायंभुव मनु को आदि भी कहा जाता है। आदि का अर्थ होता है प्रारंभ।

सभी भाषाओं के मनुष्य-वाची शब्द मैन, मनुज, मानव, आदम, आदमी आदि सभी मनु शब्द से प्रभावित है। यह समस्त मानव जाति के प्रथम संदेशवाहक हैं। इन्हें प्रथम मानने के कई कारण हैं। सभी मनु की संतानें हैं इसीलिए मनुष्य को मानव (=मनु से उत्पन्न) भी कहा जाता है। ब्रह्मा के एक दिन को कल्प कहते हैं। एक कल्प में 14 मनु हो जाते हैं। एक मनु के काल को मन्वन्तर कहते हैं। वर्तमान में वैवस्वत मनु (7वें मनु) हैं

हिंदू धर्म में स्वयंभुव मनु के ही कुल में आगे चलकर स्वायंभुव सहित कुल मिलाकर क्रमश: 14 मनु हुए। महाभारत में 8 मनुओं का उल्लेख मिलता है व श्वेतवराह कल्प में 14 मनुओं का उल्लेख है। जैन ग्रन्थों में 14 कुलकरों का वर्णन मिलता है

चौदह मनुओं के नाम

स्वयंभुव मनु
स्वरोचिष मनु
उत्तम मनु
तामस मनु या तापस मनु
रैवत मनु
चाक्षुषी मनु
वैवस्वत मनु या श्राद्धदेव मनु (वर्तमान मनु)
सावर्णि मनु
दक्ष सावर्णि मनु
ब्रह्म सावर्णि मनु
धर्म सावर्णि मनु
रुद्र सावर्णि मनु
देव सावर्णि मनु या रौच्य मनु
इन्द्र सावर्णि मनु या भौत मनु

मनु के सबसे पहले उल्लेख में, ऋग्वेद में, मनु केवल “पांच लोगों” या “पंच जन” (पांच जनजातियाँ गुदा, द्रुह्युस, यदु, तुर्वश और पुरु) के पूर्वज हैं। इंडो-आर्यन अन्य सभी लोगों को एक-मनु’ मानते थे बाद में, हिंदू ब्रह्मांड विज्ञान में, प्रत्येक कल्प में चौदह मन्वन्तर होते हैं, और प्रत्येक मन्वन्तर का नेतृत्व एक अलग मनु करता है।वर्तमान ब्रह्मांड, वैवस्वत नामक 8वें मनु द्वारा शासित होने का दावा किया जाता है।

वैवस्वत महान बाढ़ से पहले द्रविड़ का राजा था। उन्हें विष्णु के मत्स्य (मछली) अवतार द्वारा बाढ़ की चेतावनी दी गई थी, और एक नाव का निर्माण किया जो वेदों, मनु के परिवार और सात ऋषियों को सुरक्षा के लिए ले गई, मत्स्य की मदद से। कहानी महाभारत और कुछ अन्य पुराणों सहित अन्य ग्रंथों में भिन्नता के साथ दोहराई जाती है। यह गिलगमेश और नूह जैसी अन्य बाढ़ के समान है।

पहले मनु स्वयंभूव मनु थे। वह भगवान ब्रह्मा के मन में जन्मे पुत्र और शतरूपा के पति थे। उनकी तीन बेटियाँ थीं, अर्थात् आकृति, देवहुति और प्रसूति। देवहुति का विवाह कर्दम ऋषि से हुआ था और उन्होंने नौ पुत्रियों और कपिला नामक एक पुत्र को जन्म दिया था। प्रसूति ने ख्याति, अनसूया सहित कई पुत्रियों को जन्म दिया और आकृति ने एक पुत्र यज्ञ और एक पुत्री को जन्म दिया।

कपिला और यज्ञ दोनों, जो क्रमशः देवहुति और आकृति के पुत्र थे, विष्णु के अवतार थे। स्वयंभू मनु अपनी पत्नी शतरूपा के साथ सुनंदा नदी के तट पर तपस्या करने के लिए वन में गए। किसी समय, राक्षसों ने उन पर हमला किया, लेकिन यज्ञ ने अपने पुत्रों, देवताओं के साथ, उन्हें तेजी से मार डाला।

तब यज्ञ ने व्यक्तिगत रूप से स्वर्गीय ग्रहों के राजा इंद्र का पद ग्रहण किया। स्वयंभू मनु का निवास ब्रह्मवर्त है, जिसकी राजधानी बरहिस्मती शहर है। बरहिस्मती का निर्माण तब हुआ जब विष्णु ने अपने ब्रह्मांडीय वराह रूप (वराह) में उनके शरीर को हिलाया, वहाँ बड़े बाल गिरे, जो शहर में बदल गए। गिरे हुए छोटे बाल कुश और कासा घास में बदल गए।

इस मन्वंतर में, सप्तर्षि मारीचि, अत्रि, अंगिरस, पुलह, क्रतु, पुलस्त्य और वशिष्ठ थे। स्वयंभू-मन्वन्तर में भगवान विष्णु के अवतार को यज्ञ कहा गया।

वर्तमान काल तक वराह कल्प के स्वायम्भु मनु, स्वरोचिष मनु, उत्तम मनु, तमास मनु, रेवत-मनु चाक्षुष मनु तथा वैवस्वत मनु के मन्वन्तर बीत चुके हैं और अब वैवस्वत तथा सावर्णि मनु की अन्तर्दशा चल रही है। सावर्णि मनु का आविर्भाव विक्रमी सम्वत प्रारम्भ होने से ५६३० वर्ष पूर्व हुआ था

स्वायंभुव मनु एवं शतरूपा के कुल पाँच सन्तानें हुईं थीं जिनमें से दो पुत्र प्रियव्रत एवं उत्तानपाद तथा तीन कन्याएँ आकूति, देवहूति और प्रसूति थे।

कन्याएं


आकूति का विवाह रुचि प्रजापति के साथ और प्रसूति का विवाह दक्ष प्रजापति के साथ हुआ। देवहूति का विवाह प्रजापति कर्दम के साथ हुआ। कपिल ऋषि देवहूति की संतान थे। हिंदू पुराणों अनुसार इन्हीं तीन कन्याओं से संसार के मानवों में वृद्धि हुई।

पुत्र
मनु के दो पुत्रों प्रियव्रत और उत्तानपाद में से बड़े पुत्र उत्तानपाद की सुनीति और सुरुचि नामक दो पत्नी थीं। उत्तानपाद के सुनीति से ध्रुव तथा सुरुचि से उत्तम नामक पुत्र उत्पन्न हुए। ध्रुव ने भगवान विष्णु की घोर तपस्या कर ब्रह्माण्ड में ऊंचा स्थान पाया।

स्वायंभुव मनु के दूसरे पुत्र प्रियव्रत ने विश्वकर्मा की पुत्री बहिर्ष्मती से विवाह किया था जिससे उनको दस पुत्र हुए थे।

कामायनी के मनु

मनु कवि जयशंकर प्रसाद की कामायनी के भी मुख्य पात्र हैं। महाभारत में उल्लेखित वैवस्वत मनु का संबंध कामायनी के नायक से जोड़ा जा सकता है। कामायनी में मनु का चित्रण देवताओं से इतर मानवीय सृष्टि के व्यवस्थापक के रूप में विशेषतः किया गया है। देव सृष्टि के संहार के बाद वे चिंता मग्न बैठे हुए हैं। श्रद्धा की प्रेरणा से वे जीवन में फिर से रुचि लेने लगते हैं पर कुछ काल के बाद श्रद्धा से असंतुष्ट होकर उसे छोड़कर वे चले जाते हैं।

अपने भ्रमण में वे सारस्वत प्रदेश जा पहुँचते हैं, जहाँ की अधिष्ठात्री इड़ा थी। इड़ा के साथ वे एक नई वैज्ञानिक सभ्यता का नियोजन करते हैं। पर उनके मन की मूल अधिकर की लिपसा अभी गई नहीं है। वे इड़ा पर अपना अधिकार चाहते हैं। फलस्वरूप प्रजा विद्रोह करती है, जिसमें मनु घायल होकर मूर्छित हो जाते हैं। श्रद्धा अपने पुत्र मानव के लिए हुए मनु की खोज में सारस्वत प्रदेश तक आ जाती है, जहाँ दोने का मिलन होता है। मनु अपनी पिछली भूलों के लिए पश्चात्ताप करते हैं। श्रद्धा मानव को इड़ा के संरक्षण में छोड़कर मनु को लेकर हिमालय की उपत्यका में चली जाती है, जहाँ श्रद्धा की सहायता से मनु आनंद की स्थिति को प्राप्त होते हैं।

मनुस्मृति

महाभारत में 8 मनुओं का उल्लेख है। शतपथ ब्राह्मण में मनु को श्रद्धादेव कहकर संबोधित किया गया है। श्रीमद्भागवत में इन्हीं वैवस्वत मनु और श्रद्धा से मानवीय सृष्टि का प्रारंभ माना गया है। श्वेत वराह कल्प में 14 मनुओं का उल्लेख है। महाराज मनु ने बहुत दिनों तक इस सप्तद्वीपवती पृथ्वी पर राज्य किया। उनके राज्य में प्रजा बहुत सुखी थी। इन्हीं ने मनुस्मृति नामक ग्रन्थ की रचना की थी जो आज मूल रूप में उपलब्ध नहीं है। उसके अर्थ का अनर्थ ही होता रहा है। उस काल में वर्ण का अर्थ वरण होता था(वरण करना का अर्थ है धारण करना स्वीकार करना। अर्थात जिस व्यक्ति ने जो कार्य करना स्वीकार या धारण किया वह उसका वर्ण कहलाया) और आज जाति।

प्रजा का पालन करते हुए जब महाराज मनु को मोक्ष की अभिलाषा हुई तो वे संपूर्ण राजपाट अपने बड़े पुत्र उत्तानपाद को सौंपकर एकान्त में अपनी पत्नी शतरूपा के साथ नैमिषारण्य तीर्थ चले गए लेकिन उत्तानपाद की अपेक्षा उनके दूसरे पुत्र राजा प्रियव्रत की प्रसिद्धि ही अधिक रही। स्वयम्भु मनु के काल के ऋषि मरीचि, अत्रि, अंगिरस, पुलह, कृतु, पुलस्त्य और वशिष्ठ हुए। राजा मनु सहित उक्त ऋषियों ने ही मानव को सभ्य, सुविधा संपन्न, श्रमसाध्य और सुसंस्कृत बनाने का कार्य किया।