कबीर दास जीवनी: Kabir das Wikipedia in hindi
कबीर का जन्म 1398 में बनारस मैं हुआ था .लोग इनको कबीर साहब, संत कबीर, कबीर दास आदि नामों से पुकारा करते थे | वह एक सफल समाज सुधारक, महान कवि, महान परिवर्तन वाले व्यक्ति के रूप में ख्याति पाई |
भारत में जब भी भाषा संस्कृति आदि की चर्चा होती है कबीर का नाम सबसे ऊपर आता है. इनके नाम से कबीर पंथ नामक संप्रदाय भी प्रचलित है. कबीरपंथी इन्हें एक अलौकिक अवतारी पुरुष मानते हैं. इस विषय में निर्णय करते समय जनश्रुति, संप्रदायग्रंथ ,अनेक रचनाओं के सहारे कबीर को एक चमत्कारी पुरुष के रूप में माना जाता है.
कबीरदास का योगदान: Kabir Das Biography in hindi
कबीर मध्यकालीन भारत के एकमात्र ऐसे कवि हैं जो जीवन काल तक समाज और लोगों के बीच में कुरीतियों को अपने दोहो के द्वारा उस पर आघात किया करते थे .वह कर्म प्रधान समाज के निर्माण हेतु उपदेश दोहे का संदेश दिया करते थे. उन्होंने जीवन में कई ऐसे उपदेश दिए जिन्हें अपनाकर व्यक्ति या राजा समाज में सुधार लाएं
कबीर दास जीवन परिचय: kabir das history in hindi
कबीरदास के जन्म के बारे में बहुत सारी लोगों की कहानियां है . कबीरपंथीयों का मानना है कि कबीर का जन्म काशी में लहरतारा तालाब में कमल के ऊपर बालक के रूप में हुआ था. कुछ लोगों का मानना है कि वह जन्म से मुसलमान थे और युवावस्था में स्वामी आनंद के प्रभाव से उन्होंने हिंदू धर्म की बातें सीखी .
कहानियां कहती है कि रात के समय पंचगंगा घाट की सीढ़ियों पर गिर पड़े थे .रामानंद स्नान करने आए और उनका पैर कबीर से टकराया .उसके बाद रामानंद जी के मुंह से राम-राम निकला. इस राम को कबीर ने दीक्षा मंत्र मान लिया और रामानंद जी को अपना गुरु स्वीकार कर लिया.
कबीरदास की शादी लोई नामक कन्या से हुआ था .विवाह के बाद कबीर दास जी को एक बेटा हुआ .उसका नाम कमाल था और एक बेटी कमाली.
कबीर दास के दोहे : Kabir Das Updesh
कबीर दास ने खुद कभी कोई ग्रंथ नहीं लिखा क्योंकि वह अनपढ़ थे . इसलिए अपने उपदेशों को दोहे के द्वारा मुंह से बोला करते थे जिसके बाद उनके शिष्य उसे लिखा करते थे .कबीरदास किसी धर्म को नहीं मानते थे. वह सभी धर्मों के अच्छे विचारों को अपनाने में विश्वास रखते थे. इसी वजह से हिंदुओं और मुसलमानों में बराबर से प्रचलित है
कबीर दास को अनेक भाषाओं का ज्ञान था और साधु संतों के साथ जगह-जगह घुमा करते थे. कबीर दास अपनी स्थानीय भाषा में लोगों को समझाते थे और उपदेश देते थे. कबीर ने गुरु का स्थान भगवान से ऊपर बताया है कबीर दास हमेशा सत्य बोलने वाले निडर और निर्भीक व्यक्ति थे.
कबीर का साहित्यिक परिचय
कबीरदास के जन्म के समय भारत की राजनीतिक, सामाजिक,आर्थिक,धार्मिक स्थिति की झलक उनके दोहे से मिलती है. दोहे से पता चलता है कि उस समय की स्थिति गंभीर थी और शोचनीय थी. एक ओर मुसलमान शासकों की धर्मांधता से समाज परेशान थी, दूसरी तरफ हिंदू धर्म के विधि विधान और पाखंड से लोगों का शोषण किया जा रहा था.
जनता में भक्ति भावनाओं का अभाव था. ऐसे संघर्ष के समय में कबीर दास ने अपने दोहों के माध्यम से उस समय के लोगों की जीवन में भक्ति भावना को जगाया. इस्लाम धर्म के आगमन से भारतीय धर्म और समाज व्यवस्था में उठा पटक चालू था .हिंदू धर्म के जाति व्यवस्था को पहली बार कोई दूसरा धर्म ठोकर मार रहा था.
कबीरदास की कविताओं का एक एक शब्द पाखंड और पाखंडवाद या धर्म के नाम पर ढोंग करने वालों के खिलाफ था. उनके दोहे मौलवियों और पंडितों के द्वारा किए जाने वाले पाखंड पर कुठाराघात करता था .
असत्यऔर अन्याय की पोल खोल कर कबीर दास जागृत करते थे. कबीर अपने दोहों और प्रदूषण के द्वारा समाज में अंधविश्वासों को हटाने की कोशिश कर रहे थे.
कबीरदास के ग्रंथ: kabir das granth in hindi
कबीरदास के नाम पर 8 ग्रंथ हैं. दूसरे इतिहासकारों के हिसाब से 84 ग्रंथ की उपस्थिति दर्ज की गई है .कबीर की वाणी का संग्रह बीजक के नाम से मशहूर है. यह पंजाबी राजस्थानी खड़ी बोली अवधि पूर्वी बृजवासी समेत कई भाषाओं का मिश्रण है
कबीर दास की मृत्यु
कबीर दास की मृत्यु काशी के पास मगहर में सन् 1518 में हुई थी. एक किंबदंती के हिसाब से उनके मरने के बाद विवाद पैदा हो गया . हिंदुओं का मानना था की उनका अंतिम संस्कार हिंदू रीति-रिवाजों के हिसाब से हो . जबकि आपकी मुसलमान समाज उन्हें अपना मानता था और इसलिए इस्लामी रीति-रिवाजों के तहत दफन करना चाहता था.
इस विवाद के कारण उनके शरीर से चादर हट गई ,वहां लोगों ने फूलों का ढेर देखा.आधे फूल हिंदुओं को दे दिए गए, आधे फूल मुसलमानों को दे दिए गए. उन फूलों को अपने-अपने रीति-रिवाजों से अंतिम संस्कार किया गया