Jharkhand First Person
1 | झारखंड के प्रथम राज्यपाल | प्रभात कुमार |
2 | झारखंड के प्रथम मुख्यमंत्री | बाबूलाल मरांडी |
3 | झारखंड के प्रथम निर्दलीय मुख्यमंत्री | मधु कोड़ा |
4 | झारखंड के विधान सभा के प्रथम अध्यक्ष | इंदर सिंह नामधारी |
5 | झारखंड के प्रथम प्रोटेम स्पीकर | विशेश्वर खान |
6 | झारखंड विधानसभा के प्रथम उपाध्यक्ष | बागुन सुम्ब्रई |
7 | झारखंड विधानसभा के प्रथम विपक्ष के नेता | स्टीफन मरांडी |
8 | झारखंड की प्रथम महिला मंत्री | जोबा मांझी |
9 | झारखंड के प्रथम मुख्य न्यायाधीश | विनोद कुमार गुप्ता |
10 | झारखंड के प्रथम महाधिवक्ता | मंगलमय बनर्जी |
11 | झारखंड के प्रथम पुलिस महानिदेशक | शिवाजी महान कैरे |
12 | झारखंड के प्रथम मुख्य सचिव | विजय शंकर दुबे |
13 | झारखंड के प्रथम लोकायुक्त | लक्ष्मण उरावँ |
14 | झारखंड राज्य के महिला आयोग की प्रथम अध्यक्ष | लक्ष्मी सिंह |
15 | झारखंड के प्रथम महिला राज्यपाल | द्रोपदी मुर्मू |
16 | झारखंड के प्रथम सैनिक जिसे परमवीर चक्र सम्मान मिला | अल्बर्ट एक्का |
17 | झारखंड के प्रथम पुलिस अधिकारी जिसे अशोक चक्र सम्मान से सम्मानित किया गया | रणधीर वर्मा |
18 | झारखंड की प्रथम महिला हॉकी खिलाड़ी जिसने ओलंपिक में खेला | निक्की प्रधान |
19 | झारखंड से भारतीय क्रिकेट टीम के कप्तान | महेंद्र सिंह धोनी |
20 | झारखंड की प्रथम महिला अंतरराष्ट्रीय अंपायर | आश्रित लाकड़ा |
21 | झारखंड के प्रथम गैर आदिवासी मुख्यमंत्री | रघुवर दास |
22 | झारखंड का प्रथम बिजली घर | तिलैया |
23 | झारखंड में प्रथम स्थापित विश्वविद्यालय | रांची विश्वविद्यालय |
24 | झारखंड का प्रथम डिग्री कॉलेज | संत कोलंबस कॉलेज |
25 | झारखंड से प्रकाशित होने वाली प्रथम हिंदी समाचार | राष्ट्रीय भाषा |
26 | झारखंड के प्रथम हिंदी मासिक पत्रिका | घर बंधन |
27 | झारखंड के प्रथम अंग्रेजी दैनिक समाचार पत्र | दिल्ली प्रेस |
28 | झारखंड का प्रथम फिल्म | आक्रांत |
29 | झारखंड का प्रथम नागपुरी फिल्म | सोना का नागपुर |
30 | झारखंड का प्रथम हवाई अड्डा | बिरसा मुंडा हवाई अड्डा रांची |
31 | झारखंड का प्रथम संथाली फिल्म | मुख्य ब्रहा |
32 | झारखण्ड में अंग्रेजो का प्रथम प्रवेश | 1767 ई0 सिंहभूम |
33 | झारखण्ड का प्रथम रेल मार्ग | राजमहल से मुगलसराय तक |
34 | झारखण्ड लोक सेवा आयोग के प्रथम अध्यक्ष | फटिक चन्द्र हेम्ब्रम |
35 | झारखण्ड का प्रथम चिकित्सा महाविद्यालय | राजेन्द्र चिकित्सा महाविद्यालय, राँची |
36 | झारखण्ड का प्रथम आयुर्वेद महाविद्यालय | राजकीय आयुर्वेद महाविद्यालय , लोहरदगा |
37 | झारखण्ड का प्रथम आदिवासी पद्मश्री | जुएल लकड़ा |
38 | झारखण्ड का प्रथम अशोक चक्र प्राप्तकर्ता | रणधीर वर्मा |
39 | झारखण्ड का प्रथम अंतर्राष्ट्र आदिवासी महिला हॉकी खिलाड़ी | सावित्री पुत्ति |
40 | झारखण्ड का प्रथम अंतर्राष्ट्र महिला एथलीट | विजय निलमणि खलखो |
41 | विश्व विजेता बनने वाला झारखण्ड का प्रथम शतरंज खिलाड़ी | दीप सेन गुप्ता |
झारखण्ड देश का सर्वाधिक जंगल क्षेत्र वाला राज्य है और इसी जंगल के कारण इस राज्य नाम झारखंड रखा गया है जहाँ झार का मतलब झाड़ जंगल को दर्शाता है वहीँ खंड यानि टुकड़ा हैं, यह राज्य अपने नाम के अनुसार ही मूल रूप से एक वन क्षेत्र है जिसकी स्थापना ”झारखण्ड आन्दोलन” के परिणामस्वरूप हुई |इस राज्य में प्रचुर मात्रा में खनिज होने के कारण इसे ”भारत का रुर” भी कहा जाता हैं, रुर एक खनिज प्रदेश है जो यूरोप महादीप के जर्मनी राज्य में स्थित हैं |
History of Jharkhand in Hindi
वैदिक काल में झारखंड :-
झारखंड का वर्णन वैदिक पुस्तकों में भी मिलता हैं वायु पुराण में झारखण्ड को मुरणड कहा गया है और विष्णु पुराण में इसे मुंड नाम से जाना गया है| महा भारत काल में छोटा नागपुर क्षेत्र को पुंडरिक नाम से जाना जाता था | कुछ बौध ग्रंथो में चीनी यात्री फाह्यान के 399 इसा में भारत आने का वर्णन मिलता है फाह्यान ने अपने पुस्तक में छोटा नागपुर को कुक्कुटलाड कहा हैं| तथा पूर्व मध्यकालीन संस्कृत साहित्य में छोटा नागपुर को कलिन्द देश कहा गया हैं| झारखण्ड का वर्णन चीनी यात्री युवान च्वांग ईरानी यात्री अब्दुल लतीफ़ तथा ईरानी धर्म आचार्य मुल्ला बहबहानी ने भी किया हैं|
इतिहास:-
झारखण्ड राज्य का इतिहास लगभग 100 वर्ष से भी पुराना हैं, भारतीय हॉकी के खिलाडी तथा ओलम्पिक खेलो में भारतीय हॉकी टीम के कप्तान जयसिंह मुंडा ने वर्ष 1939 ईसवीं में वर्तमान बिहार राज्य के कुछ दक्षिणी जिलों को मिला कर एक नया राज्य बनाने का विचार रखा था| हालाँकि जयसिंह मुंडा का यह सपना 2 अक्टूम्बर 2000 को साकार हुआ जब संसद में झारखण्ड को अलग राज्य का दर्जा देने का बिल पास हुआ और फिर उसी साल 15 नवम्बर को झारखण्ड भारत का 28वां राज्य बना|
इतिहासकारों के अनुसार इस क्षेत्र को मगध साम्राज्य से पहले भी एक इकाई के रूप में चिन्हित किया जाता था क्योंकि इस क्षेत्र की भू-सरंचना, सांस्कृतिक पहचान अलग ही थी| झारखण्ड राज्य को आदिवासी समुदाय का नैसर्गिक स्थान माना जाता है, जिन्हें भारतीय सविधान में अनुसूचित जनजाति का दर्जा दिया गया हैं| जिनमे खड़िया, संताल, मुंडा, हो, उरांव, असुर, बिरजिया, पहाड़िया आदि जातियां प्रमुख हैं| झारखण्ड के जंगलो को साफ कर खेती लायक बनाने तथा मनुष्य के रहने योग्य बनाने का श्रेय इन्ही आदिवासियों को दिया जाता हैं
मुस्लिम शासकों तथा अंग्रेजी हुकूमत से पहले यहाँ की व्यवस्था आदिवासियों ने ही संभाली थी इन आदिवासियों की मुंडा प्रथा में गाँव में एक मुखिया नियुक्त किया जाता था जिसे मुंडा कहा जाता था तथा गाँव के संदेशवाहक को डकुवा कहा जाता था| बाद में मुग़ल सल्न्न्त के दौरान इस प्रदेश को कुकरा प्रदेश के नाम से जाना जाने लगा| वर्ष 1765 के बाद यह क्षेत्र ब्रिटिश साम्राज्य के अधीन हो गया था | ब्रिटिश साम्राज्य की अधीनता के दौरान यहाँ के आदिवासियों कर बहुत अत्याचार हुए और बाहर से आने वाले लोगों का दबदबा बढ़ता गया| दिन प्रतिदिन बढ़ते अत्याचारों के कारण आदिवासियों द्वारा कई विद्रोह भी किये गए जिनमे से कुछ निम्नलिखित हैं|
विद्रोह एवं आन्दोलन :-
पहाड़िया विद्रोह(1772-1780) :-
- पहाड़िया आन्दोलन की शुरुआत झारखंड राज्य के आदिवासियों द्वारा उन पर बढ़ रहे ब्रिटिश अत्याचारों के खिलाफ की गयी थी जो वर्ष 1772 इसवी से 1780 तक चला था |
मांझी विद्रोह(1780-1785) :-
- इस विद्रोह की शुरुआत तिलका मांझी उर्फ़ जबरा मांझी ने की थी | तिलका मांझी ब्रिटिश हुकूमत के अत्याचारों के खिलाफ आवाज़ उठाने वाले आदिवासी योधा थे | तिलका मांझी का जन्म 11 फ़रवरी 1750 को हुआ था, तिलका ने वर्ष 1772 से 1784 तक ब्रिटिश सत्ता के खिलाफ बिना किसी समर्पण के अपना विद्रोह जारी रखा| मांझी ने ब्रिटिश साम्राज्य के अत्याचारों के खिलाफ एक विद्रोह की शुरुआत की जिसे मांझी विद्रोह का नाम दिया गया यह विद्रोह 1780 से 1785तक चला था |
तमाड़ विद्रोह (1795-1800) :-
- इस विद्रोह का नेत्रत्व दुखान मानकी ने किया था और यह विद्रोह 1795 से 1800 इसवी तक चला था|
मुंडा विद्रोह( 1795-1800):-
- इस विद्रोह का नेत्रत्व विष्णु मानकी ने किया था और यह विद्रोह भी तमाड़ विद्रोह की तरह 1795 से 1800 इसवी तक चला था|
दुखान मानकी के नेत्रित्व में मुंडा विद्रोह (1800-1802):-
- मुंडा जनजाति ने झारखण्ड राज्य में ब्रिटिश साम्राज्य के अत्याचारों के खिलाफ समय समय पर आन्दोलन किये हैं इसी क्रम में दुखन मानकी द्वारा एक विद्रोह किया गया जो 1800 से 1802 इसवी तक चला था|
मुंडा विद्रोह (1819-1820) :-
- यह विद्रोह भी सभी विद्रोहों की तरह अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ हुआ था इसकी शुरुआत पलामू के भूकन सिंह ने की थी|
खेवर विद्रोह( 1832-1833) :-
- खेवर विद्रोह की शुरुआत दुबाई गौसाई, पटेल सिंह और भागीरथ के नेतृत्व में 1832 में की गई थी और यह विद्रोह 1833 तक चला|
भूमिज विद्रोह (1833-1834) :-
- इस विद्रोह का नेतृत्व संत गंगानारायण ने किया था| इस विद्रोह को संत गंगानारायण ने वर्तमान बंगाल के मिदनापुर जिले के डालभुम और जंगल महल के आदिवासियों की मदद से किया|
सांथालों का विद्रोह(1855):-
- संथाल जनजाति जो मुख्यतः झारखण्ड, पशिचम बंगाल, उड़ीसा तथा असाम में पाई जाती हैं , इस जनजाति में बंगाल के गर्वनर लॉर्ड कार्नवालिस के खिलाफ विद्रोह छेड़ा| इस विद्रोह को संथालो का विद्रोह कहा गया|
संथालों का विद्रोह(1855-1860) :-
- सांथालों का दूसरा विद्रोह सिधु कान्हू के नेतृत्व में किया गया था यह विद्रोह 1855 में शुरू हुआ और 1860 तक चला|
सिपाही विद्रोह( 1856-1857) :-
- यह विद्रोह ब्रिटिश साम्राज्य के खिलाफ पहला सशस्त्र विद्रोह था जिसे शहीदलाल, विश्वनाथ सहदेव, शेख भिखारी, गनपतराय एवं बुधु बीर के नेतृत्व के किया गया| इस विद्रोह की शुरुआत आगजनी तथा छावनियों में तोड़-फोड़ से की गई लेकिन आगे जाकर इस विद्रोह ने विशाल रूप लिया| और इस विद्रोह के ख़त्म होते-होते ईस्ट इंडिया कंपनी का शासन ख़त्म हो चूका था और ब्रिटिश ताज का प्रत्यक्ष शासन शुरू हुआ|
खेरवार आन्दोलन( 1874) :-
- खेरवार आन्दोलन की शुरुआत भागीरथ मांझी के नेतृत्व में 1874 में की गई| भागीरथ मांझी तिलका मांझी के पुत्र थे ब्रिटिश साम्राज्य के खिलाफ विद्रोह छेड़ने पर तिलका मांझी को फांसी दे दी गयी, इसके बाद भागीरथ मांझी ने खेरवार आन्दोलन का नेतृत्व किया|
खडिया विद्रोह(1880) :-
- खड़िया विद्रोह की शुरुआत तेलंगा खड़िया ने की थी, तेंलगा खड़िया का जन्म 9 फरवरी 1806 को झारखण्ड के गुमला जिले के मुरगु गाँव में हुआ था|
मुंडा विद्रोह(1895-1900) :-
- ये विद्रोह भी मुंडा विद्रोह का हिस्सा था जो मुंडा जनजाति ने 18 वीं सदी से 20 वीं सदी तक तक चलाया था| इस विद्रोह का नेतृत्व बिरसा मुंडा ने किया था , बिरसा का जन्म झारखण्ड के उलीहातू नामक स्थान पर हुआ था| बिरसा के नेतृत्व में झारखण्ड में उलगुलान नामक महान आन्दोलन किया गया था, मुंडा जनजाति के लोग आज भी बिरसा को भगवान् के रूप में पूजते हैं|
इन विद्रोहों के बाद वर्ष 1914 इसवी में विद्रोह किया गया जिसका नेतृत्व ताना भगत ने किया था | इस विद्रोह में ताना भगत ने 26 हजार आदिवासियों के सहयोग से किया जिससे ब्रिटिश साम्राज्य को भारी नुकसान हुआ था| और इस आन्दोलन से प्रभावित होने के बाद महात्मा गाँधी ने सविनय अवज्ञा आन्दोलन की शुरुआत की
ब्रिटिश साम्राज्य के दौरान झारखण्ड :-
वर्ष 1765 में यह क्षेत्र ब्रिटिश साम्राज्य के अधीन हो गया था, ईस्ट इंडिया कंपनी ने यह झारखण्ड क्षेत्र के लोगों को गुलाम बना कर उन पर जुल्म करने शुरू कर दिए जिसके परिणाम स्वरूप यहाँ के लोगो में ब्रिटिश साम्राज्य के खिलाफ विद्रोह की भावना पैदा हो गयी| 1857 में अंग्रेजो के खिलाफ विद्रोह उग्र हुआ लेकिन यहाँ के आदिवासियों ने लगभग 100 साल पहले ही अंग्रेजों के खिलाफ विद्रोह की मुहीम छेड़ दी थी|
आदिवासियों ने झारखण्ड की जमीन की रक्षा के लिए ब्रिटिश साम्राज्य से कई विद्रोह किये |तिलका मांझी ने सबसे पहले ब्रिटिश साम्राज्य के खिलाफ विद्रोह के खिलाफ विद्रोह की मुहीम छेड़ी, 1796 में एक आदिवासी नेता संत लाल ने जमीदारों तथा ब्रिटिश सरकार से अपनी जमीने छुड़ाने तथा पूर्वजों की जमीन पुनः स्थापित करने का प्रण लिया| ब्रिटिश सरकार ने अपने सैनिकों को भेज तिलका मांझी के विद्रोह को कुचल दिया
सन 1797 में अन्य जनजातियों ने भी ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ विद्रोह छेड़ दी| इसके बाद पलामू में चेरो जनजाति के लोगों ने 1800 ईसवीं में ब्रिटिश साम्राज्य के विरुद्ध विद्रोह शुरू किया| इस विद्रोह के सात साल बाद 1807 ईसवीं में बैरवे में ओरेंस ने गुमला के पशिचम में श्रीनगर के अपने बड़े मालिक की हत्या कर दी| यह बात शीघ्र ही गुमला तथा आसपास के इलाकों में फ़ैल गयी| आसपास के मुंडा जनजाति के लोगों तथा तमार इलाकों में फैले हुए लोगो ने भी ब्रिटिश राज का विद्रोह किया|
1813 के विद्रोह में गुलाब सिंह भूम बैचेन हो रहे थे लेकिन फिर 1820 में खुल कर जमीदारों तथा अंग्रेजों के खिलाफ विद्रोह करने लगे| इसे लाका कोल रिसिंग्स 1820 -1821 के नाम से जाना गया| फिर महान कोल रिइसिंग आया और यह विद्रोह 1832 में किया गया था| यह विद्रोह झारखण्ड की जनजातियों द्वारा किया गया एक बड़ा विद्रोह था इस विद्रोह ने ब्रिटिश साम्राज्य को काफी परेशान किया था| 1855 में संथाल तथा कन्नू के दो भाइयों के नेतृत्व में संथाल विद्रोह शुरू हुआ| इन विद्रोहियों ने अंग्रेजी हुकूमत को बेहद परेशान किया, लेकिन फिर बाद में ब्रिटिश सरकार ने इन्हें भी कुचल दिया|
Jharkhand Ka Bhugol : Jharkhand Geography in Hindi
भारत के उत्तर में स्थित यह राज्य चतुर्भुज के आकार का है जिसकि चौड़ाई (पूर्व से पश्चिम) 463 कि0मी0 एवं लम्बाई (उत्तर से दक्षिण) 380 कि0मी0 है। झारखण्ड राज्य का कुल क्षेत्रफल 79,714 वर्ग कि0मी0 है जो कि सम्पूर्ण भारत के क्षेत्रफल का 2.42 % हिस्सा है। सीमावर्ती राज्य उत्तर में बिहार, दक्षिण में ओडिशा, पूर्व में पश्चिम बंगाल , पश्चिम में छत्तीसगढ़ एवं उत्तर प्रदेश।jharkhand ka bhugol
भौगोलिक स्थिति | भारत के उत्तर पूर्वी भाग में स्थित |
चौड़ाई (पूर्व से पश्चिम ) | 463 km |
लंबाई (उत्तर से दक्षिण ) | 380 km |
अक्षांशीय विस्तार | 21°58’10” से 25°18’उत्तरी अक्षांश |
देशांतरीय विस्तार | 83°19’50”से 87°57’पूर्वी देशांतर |
भौगोलिक सीमाएं | उत्तर में बिहार, दक्षिण में ओडिशा, पूर्व में पश्चिम बंगाल , पश्चिम में छत्तीसगढ़ एवं उत्तर प्रदेश | |
राज्य की सिमा को स्पर्श करने वाले राज्य | बिहार, ओडिशा, पश्चिम बंगाल, छत्तीसगढ़, उत्तर प्रदेश |
क्षेत्रफल | 79714 वर्ग कि०मी० |
ग्रामीण क्षेत्रफल | 77,922 वर्ग कि०मी० |
सहरी क्षेत्रफल | 1,792 वर्ग कि०मी० |
भारत के कुल क्षेत्रफल का हिस्सा | 42 % |
क्षेत्रफल की दृष्टि से झारखण्ड का देश में स्थान | 15 |
कुल प्रमंडलों कि संख्या | 5 |
क्षेत्रफल की दृष्टि से सबसे बड़ा प्रमंडल | उत्तरी छोटानागपुर |
क्षेत्रफल के दृष्टि से सबसे छोटा प्रमंडल | पलामू |
कुल जिलो कि संख्या | 24 |
क्षेत्रफल के दृष्टि से सबसे बड़ा जिला | 23473, 29.45% |
क्षेत्रफल के दृष्टि से सबसे छोटा जिला | रामगढ़ |
कुल अनुमंडलों कि संख्या | 45 |
कुल प्रखंडो कि संख्या | 260 |
मुख्य फसल | धान |
जलवायु | उष्णकटिबंधीय मानसूनी |
कुल वन भूमि | पश्चिमी सिंहभूम |
झारखण्ड की मिट्टी :-
झारखण्ड में 6 तरह की मिट्टी मिलती है
- लाल मिट्टी :-यह राज्य की सर्वप्रमुख मिट्टी है | छोटानागपुर के लगभग ९०% क्षेत्र में यह मिट्टी पाई जाती है |
- काली मिट्टी :-राजमहल के पहाड़ी क्षेत्र में पाई जाती है | धान एवं चने की खेती के लिए उपयुक्त है |
- लेटराइट मिट्टी :-रांची के पश्चिमी क्षेत्र में पलामू के दक्षिणी क्षेत्र संथाल परगना के क्षेत्र आदि उपजाऊ नहीं |
- अभ्रकमूलक:- कोडरमा मांडू बड़कागांव झुमरी तिलैया आदि
- रेतीली मिट्टी :- हजारीबाग के पूर्व व धनबाद में |मोटे अनाज के लिए उपयुक्त |
- जलोढ़ मिट्टी :- मुख्यतः संथाल परगना के उत्तरी मुहाने पर | धान एवं गेहूं की खेती के लिए उपयुक्त | jharkhand ka bhugol
Birsa Munda Biography in Hindi : बिरसा मुंडा का जन्म 15 नवम्बर 1875 को रांची जिले के उलिहतु गाँव में हुआ था | मुंडा रीती रिवाज के अनुसार उनका नाम बृहस्पतिवार के हिसाब से बिरसा रखा गया था | बिरसा के पिता का नाम सुगना मुंडा और माता का नाम करमी हटू था | उनका परिवार रोजगार की तलाश में उनके जन्म के बाद उलिहतु से कुरुमब्दा आकर बस गया जहा वो खेतो में काम करके अपना जीवन चलाते थे | उसके बाद फिर काम की तलाश में उनका परिवार बम्बा चला गया |
बिरसा मुंडा का परिवार घुमक्कड़ जीवन व्यतीत करता था | बिरसा बचपन से अपने दोस्तों के साथ रेत में खेलते रहते थे और थोडा बड़ा होने पर उन्हें जंगल में भेड़ चराने जाना पड़ता था | जंगल में भेड़ चराते वक़्त समय व्यतीत करने के लिए बाँसुरी बजाया करते थे और कुछ दिनों बाँसुरी बजाने में उस्ताद हो गये थे | उन्होंने कद्दू से एक एक तार वाला वादक यंत्र तुइला बनाया था जिसे भी वो बजाया करते थे |
1886 से 1890 का दौर के जीवन का महत्वपूर्ण मोड़ रहा जिसमे उन्होंने इसाई धर्म के प्रभाव में अपने धर्म का अंतर समझा | उस मस्य सरदार आंदोलन शुरू हो गया था इसलिए उनके पिता ने उनको स्कूल छुडवा दिया था क्योंकि वो इसाई स्कूलों का विरोध कर रही थी | अब सरदार आन्दोलन की वजह से उनके दिमाग में इसाइयो के प्रति विद्रोह की भावना जागृत हो गयी थे | बिरसा मुंडा भी सरदार आन्दोलन में शामिल हो गये थे और अपने पारम्परिक रीती रिवाजो के लिए लड़ना शुरू हो गये थे | अब बिरसा मुंडा आदिवासियों के जमीन छीनने , लोगो को इसाई बनाने और युवतियों को दलालों द्वारा उठा ले जाने वाले कुकृत्यो को अपनी आँखों से देखा था जिससे उनके मन में अंग्रेजो के अनाचार के प्रति क्रोध की ज्वाला भडक उठी थी |
Birsa Munda Biography in Hindi
अब वो अपने विद्रोह में इतने उग्र हो गये थे कि आदिवासी जनता उनको भगवान मानने लगी थी और आज भी आदिवासी जनता बिरसा को भगवान बिरसा मुंडा के नाम से पूजती है | उन्होंने धर्म परिवर्तन का विरोध किया और अपने आदिवासी लोगो को हिन्दू धर्म के सिद्धांतो को समझाया था | उन्होंने गाय की पूजा करने और गौ-हत्या का विरोध करने की लोगो को सलाह दी | अब उन्होंने अंग्रेज सरकार के खिलाफ नारा दिया “रानी का शाषन खत्म करो और हमारा साम्राज्य स्थापित करो ” | उनके इस नारे को आज भी भारत के आदिवासी इलाको में याद किया जता है | अंग्रेजो ने आदिवासी कृषि प्रणाली में बदलाव किय जिससे आदिवासियों को काफी नुकसान होता था |1895 में लगान माफी के लिए अंग्रेजो के विरुद्ध मोर्चा खोल दिय था |
Birsa Munda Biography in Hindi बिरसा मुंडा ने किसानों का शोषण करने वाले ज़मींदारों के विरुद्ध संघर्ष की प्रेरणा भी लोगों को दी। यह देखकर ब्रिटिश सरकार ने उन्हें लोगों की भीड़ जमा करने से रोका। बिरसा का कहना था कि मैं तो अपनी जाति को अपना धर्म सिखा रहा हूँ। इस पर पुलिस ने उन्हें गिरफ़्तार करने का प्रयत्न किया, लेकिन गांव वालों ने उन्हें छुड़ा लिया। शीघ्र ही वे फिर गिरफ़्तार करके दो वर्ष के लिए हज़ारीबाग़ जेल में डाल दिये गये। बाद में उन्हें इस चेतावनी के साथ छोड़ा गया कि वे कोई प्रचार नहीं करेंगे।
24 दिसम्बर, 1899 को यह बिरसा मुंडा आन्दोलन आरम्भ हुआ। तीरों से पुलिस थानों पर आक्रमण करके उनमें आग लगा दी गई। सेना से भी सीधी मुठभेड़ हुई, किन्तु तीर कमान गोलियों का सामना नहीं कर पाये। बिरसा मुंडा के साथी बड़ी संख्या में मारे गए। उनकी जाति के ही दो व्यक्तियों ने धन के लालच में बिरसा मुंडा को गिरफ़्तार करा दिया। 9 जून, 1900 ई. को जेल में उनकी मृत्यु हो गई। शायद उन्हें विष दे दिया गया था।
झारखण्ड राज्य का सम्पूर्ण विवरण हिंदी में – Jharkhand State Full Detail in hindi
झारखंड की राजधानी रांची है। बहुत सारे झरना एवं जलप्रपात होने के कारण इसे झरनों का शहर भी कहा जाता है। रांची झारखंड की तीसरा सबसे प्रसिद्ध शहर है । झारखंड आंदोलन के दौरान रांची आंदोलन का केंद्र हुआ करता था। रांची भारतीय क्रिकेटर महेंद्र सिंह धोनी घर भी हैं एवं रांची को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के स्मार्ट सिटी मिशन के अंतर्गत स्मार्ट सिटी के रूप में विकसित किए जाने वाले 100 भारतीय शहरों में से एक के रूप में चुना गया है।
भौगोलिक स्थिति :-
भारत के उत्तर में स्थित यह राज्य चतुर्भुज के आकार का है जिसकि चौड़ाई (पूर्व से पश्चिम) 463 कि0मी0 एवं लम्बाई (उत्तर से दक्षिण) 380 कि0मी0 है। झारखण्ड राज्य का कुल क्षेत्रफल 79,714 वर्ग कि0मी0 है जो कि सम्पूर्ण भारत के क्षेत्रफल का 2.42 % हिस्सा है। सीमावर्ती राज्य उत्तर में बिहार, दक्षिण में ओडिशा, पूर्व में पश्चिम बंगाल , पश्चिम में छत्तीसगढ़ एवं उत्तर प्रदेश।
जनसंख्या :-
2011 के जनगणना के अनुसार झारखण्ड की आबादी लगभग 3,29,88,134 है। यहाँ का लिंगानुपात 949 स्त्री प्रति 1000 पुरुष है। प्रतिवर्ग किलोमीटर जनसंख्या का घनत्व लगभग 414 है परंतु इसमें काफी विविधता है क्योंकि राज्य में कहीं कहीं काफी सघन आबादी है तो कहीं वन प्रदेश होने की वजह से घनत्व काफी कम है।
खनीज सम्पदा :-
झारखण्ड को मुख्य रूप से खनीज सम्पदा से परिपूर्ण राज्य माना जाता हैं एवं यहाँ मुख्य रूप से पाए जाने वाले खनिजों में कोयला, हेमेटाइट (लौह अयस्क), मैग्नेटइट (लौह अयस्क) ,ताम्र अयस्क, चूना पत्थर, बाॅक्साइड, कायनाइट, चाइनाक्ले, ग्रेफाइड, क्वार्टज/सिलिका, अग्नि मिट्टी, अभ्रक है ।
प्रशासन :-
प्रमंडल- 5, जिला- 24, अनुमंडल- 43, प्रखंड- 260
झारखण्ड के पर्यटन स्थल :-
देवघर वैधनाथ मंदिर, हुंडरू जलप्रपात, दलमा अभयारण्य, बेतला राष्ट्रीय उद्यान, श्री समेद शिखरजी जैन तीर्थस्थल (पारसनाथ), पतरातू डैम, पतरातू, गौतम धारा, जोन्हा, छिनमस्तिका मंदिर, रजरप्पा, पंचघाघ जलप्रपात, दशम जलप्रपात, हजारीबाग राष्ट्रीय अभयारण्य
स्वतंत्रता सैनानी :-
विश्वविद्यालय :-
राँची विश्ववविद्यालय राँची, सिद्धू कान्हू विश्वविद्यालय दुमका, विनोबा भावे विश्वविद्यालय हजारीबाग, बिरसा कृषि विश्वविद्यालय राँची, बिरला प्रौद्योगिकी संस्थान मेसरा राँची, कोलाहन विश्वविद्यालय चाईबासा, ऩीलाम्बर पीताम्बर विश्वविद्यालय मेदिनीनगर एवं पलामू