हिन्दुत्व” शब्द संस्कृत भाषा का एक शब्द है । संस्कृत व्याकरण की दृष्टि से “हिन्दुत्व” शब्द का विश्लेषण हैं । संस्कृत भाषा में कोई भी शब्द एक “प्रकृति” और एक या एक से अधिक “प्रत्यय” के योग (मेल) से बनता है । “प्रकृति” शब्द के “मूल” को कहते हैं । इस प्रकार किसी भी शब्द का अर्थ उन प्रकृति और प्रत्यय पर निर्भर करता है, जिनके योग से वह शब्द बना है ।
“हिन्दू” और “हिन्दुत्व”, इन दोनों शब्दों के बीच वही शाब्दिक सम्बन्ध है जो “एक दूसरे का शाब्दिक पर्याय है, ““महत्” (या महान्) और “महत्त्व” (या “महत्ता”) में है( “सुन्दरत्व” और “सुन्दरता”, इत्यादि) । इस प्रकार “हिन्दुत्व” का शाब्दिक अर्थ “एक हिन्दू व्यक्ति के सभी गुणों या लक्षणों या विशेषताओं का सङ्ग्रह” इति ।
“Hindutva (‘Hindu-ness’), is an ideology that sought to define Indian culture in terms of Hindu values.”
वह “हिन्दू” है जिसे “हिन्दू” होने का गर्व है । स्वामी विवेकानन्द ने सन् 1893 में अमेरिका के शिकागो नगर में आयोजित एक विशाल सर्वधर्मीय बैठक में अति सुन्दरता से “हिन्दुधर्म” का परिचय भिन्न धर्म-सम्प्रदायों के कुल मिलाकर 8000 लोगों के समक्ष दिया था ।
“हिन्दुधर्म” को और वर्तमान काल में उसके महत्त्व को समझने के लिए स्वामी विवेकानन्द का अध्ययन करना चाहिए । “हिन्दुत्व” का राजनीतक मतलब समझने के लिए सावरकर की किताब पढ़नी पड़ेगी.
“हिन्दुधर्म” का सर्वोच्च लक्ष्य माना गया है, “पर ब्रह्म” का अपरोक्ष (सीधा, न कि केवल ग्रन्थ के पठन से प्राप्त) ज्ञान और इसी की ही प्राप्ति को ही “परम् गति” कहा गया है । अतः “हिन्दुत्व” के शाब्दिक अर्थ अन्तर्गत वो गुण गिने जाने चाहिए, जो “हिन्दू” व्यक्ति को परम् गति की ओर ले जाने में सहायक हों । हिन्दू धर्म का पालन करना, विवेक, अनुशासन, इन्द्रियों और मन पर संयम रखना, त्याग, सत्य, परोपकार, फल की अपेक्षा के बिना कर्म करना यह सब हिन्दू धर्म के लक्षणा है इत्यादि ।
राजनितिक “हिन्दुत्व” की एक झलक –
- लव जिहाद का विरोध
- घर वापसी
- गोहत्या का विरोध
- वैलेण्टाइन दिवस का विरोध
- गङ्गा की स्वच्छता
- संस्कृत भाषा के अध्ययन को प्रोत्साहन
- स्वदेशी का प्रचार
हिन्दू धर्म और हिंदुत्व एक ही है ?
शाब्दिक अर्थ में बिल्कुल कहा जा सकता है की दोनों एक ही श्रेणी में रखे जा सकते हैं. लेकिन हिंदुत्व शब्द आजकल आरएसएस के सोच के कारण ज्यादा प्रचलित हैं। इस शब्द का पहली बार उपयोग सावरकर ने किया था। उनके हिसाब से हिंदुत्व ,हिन्दुनेस और हिन्दू धर्म तीनो तीन तरह की चीज़ें हैं जिनका मतलब सावरकर के अनुसार एक दूसरे से भिन्न हैं .हिंदुत्व एक राजनीतिक विक्चारधारा भी है जिसका आविष्कार सावरकर हैं