चीनी सम्राट ( Short hindi Story For Class 9)
एक बार एक बौद्ध भिक्षु चीन पहुंचा। चीन के सम्राट ने बोधिधर्म से कहा ‘मेरा मन बेचैन है। मेरे भीतर निरंतर अशांति मची रहती है। मुझे थोड़ी शांति दें या मुझे कोई गुप्त मंत्र बताएं कि कैसे मैं आंतरिक मन को शांत कर सकूँ ।’’
बोधिधर्म ने सम्राट से कहाः ‘आप चार बजे सुबह आ जाएं। जब यहां कोई भी न हो, जब मैं यहां अपने झोपड़े में अकेला होऊं, तब आ जाएं। और याद रहे, अपने अशांत चित्त को अपने साथ ले आएं; उसे घर पर ही न छोड़ आएं।’
सम्राट घबरा कर सोचने लगा कि यह आदमी पागल है। यह कहता हैः ‘अपने अशांत चित्त को साथ लिए आना; उसे घर पर मत छोड़ आना। अन्यथा मैं शांत किसे करूंगा? मैं उसे जरूर शांत कर दूंगा, लेकिन उसे ले आना। यह बात स्मरण रहे।’
सम्राट घर गया, लेकिन पहले से भी ज्यादा अशांत होकर गया। उसने सोचा था कि यह आदमी संत है, ऋषि है, कोई मंत्र-तंत्र बता देगा। लेकिन यह जो कह रहा है वह तो बिलकुल बेकार की बात है, कोई अपने चित्त को घर पर कैसे छोड़ आ सकता है?
सम्राट रात भर सो न सका। बोधिधर्म ने जिस ढंग से सम्राट को देखा था उनसे वह सम्मोहित हो गया था। मानो कोई चुंबकीय शक्ति उसे अपनी और खींच रही हो। सारी रात उसे नींद नहीं आई। और चार बजे सुबह वह तैयार था।
वह नहीं जाना चाहता था, क्योंकि यह आदमी पागल लग रहा था। और इतने सबेरे अंधेरे में जाना, जब वहां कोई न होगा, खतरनाक था। यह आदमी कुछ भी कर सकता है। लेकिन फिर भी वह गया, क्योंकि वह बहुत बोधिधर्म के शांत स्वाभाव से प्रभावित भी था।
बोधिधर्म अपने झोपड़े में डंडा लिए बैठा था। उसने कहाः‘अच्छा तो आ गए, तुम्हारा अशांत मन कहां है? उसे साथ लाए हो न? मैं उसे शांत करने को तैयार बैठा हूं।’ सम्राट ने कहाः ‘लेकिन यह कोई वस्तु नहीं है; मैं आपको दिखा नहीं सकता हूं। मैं इसे अपने हाथ में नहीं ले सकता; यह मेरे भीतर है।’
बोधिधर्म ने कहाः ‘बहुत अच्छा, अपनी आंखें बंद करो, और खोजने की चेष्टा करो कि चित्त कहां है। और जैसे ही तुम उसे पकड़ लो, आंखें खोलना और मुझे बताना मैं उसे शांत कर दूंगा।’
उस एकांत में और इस पागल व्यक्ति के साथ-सम्राट ने आंखें बंद कर लीं। उसने चेष्टा की, बहुत चेष्टा की। और वह बहुत भयभीत भी था, क्योंकि बोधिधर्म अपना डंडा लिए बैठा था, किसी भी क्षण चोट कर सकता था।
सम्राट भीतर खोजने की कोशिश रहा। उसने सब जगह खोजा, प्राणों के अंदर में झांका, खूब खोजा कि कहां है वह मन जो कि इतना अशांत है। और जितना ही उसने देखा उतना ही उसे बोध हुआ कि अशांति तो विलीन हो गई। उसने जितना ही खोजा उतना ही मन नहीं था, छाया की तरह मन खो गया था।
दो घंटे गुजर गए और उसे इसका पता भी नहीं था कि क्या हो रहा है। उसका चेहरा शांत हो गया; वह बुद्ध की प्रतिमा जैसा हो गया। और जब सूर्योदय होने लगा तो बोधिधर्म ने कहाः ‘अब आंखें खोलो। इतना पर्याप्त जैसा हो गया। और जब सूर्योदय होने लगा तो बोधिधर्म ने कहाः ‘अब आंखें खोलो। इतना पर्याप्त है। दो घंटे पर्याप्त से ज्यादा हैं। अब क्या तुम बता सकते हो कि चित्त कहा है?’
सम्राट ने आंख खोलीं। वह इतना शांत था जितना कि कोई मनुष्य हो सकता है। उसने बोधिधर्म के चरणों पर अपना सिर रख दिया और कहाः ‘आपने उसे शांत कर दिया।’
चीनी सम्राट ने अपनी आत्मकथा में लिखा हैः ‘यह व्यक्ति अदभुत है, चमत्कार है। इसने कुछ किए बिना ही मेरे मन को शांत कर दिया। और मुझे भी कुछ न करना पड़ा। सिर्फ मैं अपने भीतर गया और मैंने यह खोजने की कोशिश की कि मन कहां है। निश्चित ही बोधिधर्म ने सही कहा कि पहले उसे खोजो कि वह कहां है। और उसे खोजने की प्रयत्न ही काफी था-वह कहीं नहीं पाया गया।
कहानी का सार (Moral of the story in hindi for class 9)
आप चिंतित हैं। ज्यादातर व्यक्ति खुद के मन की बनाई चिंता से परेशान होता है. वास्तव में बहुत बार वह परेशानी आपके अंदर मन/सोच के द्वारा बनायी जाती है. हर बार आपको खुद से बातें करके उस मन के सोच को समझना होगा।शांत और चिंता मुख्त रहने का यही मात्र उपाय है । जब तक हवा,भोजन ,पानी की कमी ना हो ,तो बाकी चीज़ो के बारे में सोचना खुद को तकलीफ देने के अलग अलग प्रवधान है।
कोई भी व्यक्ति इस संसार को चलाने के लिए जरूरी नहीं है। भगवान् भी नहीं वरना नास्तिक लोग का जीवन व्यापन करना नामुमकिन हो जाता।