प्रचार्य परीक्षाफल सुनाने के लिए खड़े हुए। सभी विद्यार्थीयों के नाम पढ़े जाने के बाद एक शिक्षार्थी खड़ा हुआ और कहा ‘ मेरा नाम नहीं बोला गया’। अनुशासन प्रिय प्रचार्य ने कहा – ‘तुम अनुत्तीर्ण हो गए होंगे ।’ उस वर्ष वह बालक लम्बे समय तक मलेरिया के बुखार से पीड़ित रहा था। किन्तु अपनी सफलता पर उसे इतना विश्वास था की वह बोल पड़ा – ‘नहीं ,ऐसा नहीं हो सकता। ‘ ऐसा ही है प्रचार्य ने दृढ़तापूर्वक कहा।’
‘नहीं ऐसा नहीं हो सकता। ‘‘मैं कहता हूँ बैठ जाओ और कुछ भी बोले तो जुर्माना होगा। ‘
‘मैं उत्तीर्ण हूँ इसमें संदेह नहीं। ‘ बालक बोला।
‘ पांच रूपये जुर्माना। ‘प्रचार्य ने कहा
‘कुछ भी हो मैं उत्तीर्ण हूँ । ‘
‘ दस रूपये। ‘प्रचार्य ने फिर बोला
बालक बोलता रहा और प्रचार्य 5-5 रूपये बढ़ते गए। नीलामी की बोली जैसा दंड बढ़ता हुआ 50 रूपया के लगभग हो गया। गुरु शिष्य के अनुसासन और आत्मविश्वास दोनों में होड़ लगी थी।
तभी लिपिक दौड़ता हुआ प्रचार्य के पास आया और कान में कुछ बोला। बालक को भी संकेत से समझा दिया। बालक बैठ गया। बाद में पता चला कि बालक ने सर्वोच्च अंक पाए थे। यह बालक था राजेंद्र जो आगे चलकर भारत के प्रथम राष्ट्रपति बने।
Moral of Story in hindi – कहानी से सिख
मेहनत करने वाले अपने मेहनत पर भरोसा करते हैं. कठिन मेहनत से ही आत्मविश्वास आता है