परिश्रम पर संस्कृत में श्लोक
द्वौ अम्भसि निवेष्टव्यौ गले बद्ध्वा दृढां शिलाम् ।
धनवन्तम् अदातारम् दरिद्रं च अतपस्विनम् ।।
अर्थ — जो व्यक्ति धनी होकर भी दान आदि नही करते और जो व्यक्ति निर्धन होने पर भी परिश्रम नही करते, इस प्रकार के लोगों के गले में पत्थर बांधकर समुद्र में फेंक देना चाहिये।
आलस्यं हि मनुष्याणां शरीरस्थो महान् रिपुः।
नास्त्युद्यमसमो बन्धुः कृत्वा यं नावसीदति ।।
अर्थ — आलस्य मनुष्य का सबसे बड़ा शत्रु है और परिश्रम मनुष्य का सबसे बड़ा मित्र है। जिस व्यक्ति के साथ परिश्रम रूपी मित्र रहता है वो कभी भी दुखी नही रह सकता।
Hard work Shlok in Sanskrit
उद्यमेन हि सिध्यन्ति कार्याणि न मनोरथैः ।
न हि सुप्तस्य सिंहस्य प्रविशन्ति मुखे मृगाः ।।
अर्थ — संसार में कोई कार्य मात्र सोचने भर से पूरा नही हो जाता, बल्कि कार्य की पूर्ति के लिये कठोर परिश्रम करना पड़ता है, ठीक उसी प्रकार जिस तरह सोते हुये शेर के मुँह में हिरण खुद नही आ जाता बल्कि हिरण के शिकार के लिये शेर को दौड़ना-भागना पड़ता है।
वाणी रसवती यस्य,यस्य श्रमवती क्रिया ।
लक्ष्मी : दानवती यस्य,सफलं तस्य जीवितं ।।
अर्थ — जिस मनुष्य की बोली मिठास भरी है, जिसका प्रत्येक कार्य परिश्रम से भरा है और जिसका धन दान आदि परोपकारी कार्यों में प्रयुक्त होता है, उस व्यक्ति का जीवन सही अर्थों में सफल है।
hard work shlokas in sanskrit
श्रमेण लभ्यं सकलं न श्रमेण विना क्वचित् ।
सरलाङ्गुलि संघर्षात् न निर्याति घनं घृतम् ॥
अर्थ — शरीर के द्वारा मन पूर्वक किया गया कार्य परिश्रम कहलाता है । परिश्रम के बिना जीवन की सार्थकता नहीं है परिश्रम के बिना न विद्या मिलती है और न धन। परिश्रम के बिना खाया गया भोजन भी स्वादहीन होता है। अतः हमें सदैव परिश्रम करना चाहिए। परिश्रम से ही कोई देश, समाज और परिवार उन्नति करता है।