गुरु तेग बहादुर पर निबंध | Guru Tegh Bahadur essay in hindi

गुरु तेग बहादुर निबंध : Guru Tegh Bahadur nibandh

श्री गुरु तेग बहादुर, सिख धर्म के दस गुरुओं में से नौवें गुरु थे. वह 17वीं शताब्दी (1621 से 1675) के दौरान रहे और उन्होंने सिख धर्म का प्रचार किया. वे दसवें गुरु गोविंद सिंह के पिता भी थे.

गुरु के रुप में उनका कार्यकाल 1665 से 1675 तक रहा.

उन्होंने पूरा उत्तर भारत और पूर्वी भारत का भ्रमण कर धर्म का प्रचार किया. श्री गुरु तेग बहादुर ने मुगल साम्राज्य के अन्याय के खिलाफ आवाज बुलंद की थी. उन्होंने अपने अनुयायियों के विश्वास और धार्मिक स्वतंत्रता व अधिकारों की रक्षा की खातिर अपने प्राणों का बलिदान दिया था.

इस कारण सम्मान के साथ उन्हें हिंद दी चादर भी कहा जाता है. श्री गुरु तेग बहादुर को विश्व के इतिहास में सर्वोच्च सथान हासिल है.

उनका जन्म 1621 में अमृतसर में हुआ था और वह गुरु हरगोबिंद के सबसे छोटे पुत्र थे। गुरु के रूप में उनका कार्यकाल 1665 से 1675 तक चला। उनके भजनों में से एक सौ पंद्रह गुरु ग्रंथ साहिब में हैं।

औरंगज़ेब के आदेशों पर गुरु तेग बहादुर की हत्या के पीछे की मंशा को स्पष्ट करने वाले कई खाते हैं।

गुरु तेग बहादुर जी पर निबंध ( Guru Tegh Bahadur essay in hindi )

सिख परंपरा में कहा गया है कि गुरु कश्मीरी पंडितों के अधिकारों के लिए खड़े हुए, जिन्होंने सम्राट के साथ उनकी ओर से हस्तक्षेप करने के लिए उनसे संपर्क किया और हाल ही में लगाए गए जजिया (कर) को रद्द करने के लिए कहा .

1675 में सार्वजनिक रूप से उनकी हत्या कर दी गई मुगल बादशाह औरंगजेब ने मुगल शासकों को मना करने और उन्हें बदनाम करने के लिए खुद को दिल्ली में बंद कर दिया था।

गुरुद्वारा सिस गंज साहिब और दिल्ली में गुरुद्वारा रकाब गंज साहिब उनके शरीर के निष्पादन और दाह संस्कार के स्थानों को चिह्नित करते हैं।

2003 में शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी द्वारा जारी नानकशाही कैलेंडर के अनुसार उनकी शहादत को 24 नवंबर को हर साल गुरु तेग बहादुर के शहीदी दिवस के रूप में याद किया जाता है।

Guru Tegh Bahadur information in hindi

सदैव किसी के साथ अन्याय न करने का दिया संदेश

श्री गुरु तेग बहादुर जी ने हमेशा यही संदेश दिया कि किसी के साथ अन्याय मत करो और किसी को मत डराओ. दूसरों की जिंदगी बचाने की खातिर उन्होंने अपने प्राणों का बलिदान दिया था.

वह जहां भी गए वहां उन्होंने सामुदायिक रसोई और कुएं की स्थापना की. धैर्य, वैराग्य और त्याग के प्रतीक श्री गुरु तेग बहादुर जी ने 20 वर्षों तक साधना की.

उन्होंने अंधविश्वास को नकार कर समाज में नए आदर्शों को जगह दी. वे वेद,पुराण और उपनिषदों के भी ज्ञानी थे. श्री गुरु तेग बहादुर जी द्वारा रचित 115 पद्य श्री गुरुग्रंथ साहिब में शामिल हैं.

इनकी स्मृति में दिल्ली में शहीदी स्थल पर गुरुद्वारा शीशगंज साहिब बनवाया गया था.