10 lines on Glacier in hindi
Glacier को हिंदी में हिमानी या हिमनद कहा जाता है।
Glacier पृथ्वी की सतह पर विशाल आकार की गतिशील बर्फराशि होता है जो अपने भार के कारण पर्वतीय ढालों का अनुसरण करते हुए नीचे की ओर प्रवाहमान होती है।
यह ग्लेशियर सघन होती है और इसकी उत्पत्ति ऐसे इलाकों में होती है जहाँ हिमपात की मात्रा हिम के क्षय से अधिक होती है और प्रतिवर्ष कुछ मात्रा में हिम अधिशेष के रूप में बच जाता है।
वर्ष दर वर्ष हिम के एकत्रण से निचली परतों के ऊपर दबाव पड़ता है और वे सघन हिम (Ice) के रूप में परिवर्तित हो जाती हैं। यही सघन हिमराशि अपने भार के कारण ढालों पर प्रवाहित होती है जिसे हिमनद कहते हैं। प्रायः यह हिमखंड नीचे आकर पिघलता है और पिघलने पर जल देता है।
पृथ्वी पर 99 % ग्लेशियर ध्रुवों पर ध्रुवीय हिम चादर के रूप में हैं। इसके अलावा गैर-ध्रुवीय क्षेत्रों के हिमनदों को अल्पाइन हिमनद कहा जाता है और ये उन ऊंचे पर्वतों के सहारे पाए जाते हैं जिन पर वर्ष भर ऊपरी हिस्सा हिमाच्छादित रहता है।
ये ग्लेशियर समेकित रूप से विश्व के मीठे पानी (freshwater) का सबसे बड़ा भण्डार हैं और पृथ्वी की धरातलीय सतह पर पानी के सबसे बड़े भण्डार भी हैं।
ग्लेशियर द्वारा कई प्रकार के स्थलरूप भी निर्मित किये जाते हैं जिनमें प्लेस्टोसीन काल के व्यापक हिमाच्छादन के दौरान बने स्थलरूप प्रमुख हैं। इस काल में हिमानियों का विस्तार काफ़ी बड़े क्षेत्र में हुआ था
और इस विस्तार के दौरान और बाद में इन हिमानियों के निवर्तन से बने स्थलरूप उन जगहों पर भी पाए जाते हैं जहाँ आज उष्ण या शीतोष्ण जलवायु पायी जाती है।
कई बार अत्यधिक बर्फबारी से पहाड़ी नदियां या झीलें जम जाती हैं और ग्लेशियर नदी का प्रवाह रोक देती है. इस वजह से भी झील बड़ा ग्लेशियर बन जाती है जिसके फटने की आशंका बढ़ जाती है.
वर्तमान समय में भी उन्नीसवी सदी के मध्य से ही ग्लेशियर का निवर्तन जारी है और कुछ विद्वान इसे प्लेस्टोसीन काल के हिम युग के समापन की प्रक्रिया के तौर पर भी मानते हैं।
ग्लेशियर का महत्व है क्योंकि ये जलवायु के दीर्घकालिक परिवर्तनों जैसे वर्षण, मेघाच्छादन, तापमान इत्यादी के प्रतिरूपों, से प्रभावित होते हैं और इसीलिए इन्हें जलवायु परिवर्तन और समुद्र तल परिवर्तन का बेहतर सूचक माना जाता है।

उत्तराखंड के चमोली जिले के जोशीमठ में ग्लेशियर फटने से आसपास के इलारों में बाढ़ आ गई है.
उत्तराखंड (Uttarakhand) के चमोली जिले के जोशीमठ के रैणी गांव में ग्लेशियर फटने से पूरे इलाके में सैलाब आ गया है. धौलगंगा नदी का जलस्तर अचानक बढ़ गया है, इससे ऋषिगंगा पावर प्रोजेक्ट ध्वस्त हो चुका है.
क्या होता है ग्लेशियर फटना या टूटना?
99 फीसदी ग्लेशियर आइस शीट (Ice Sheet) के रूप में होते हैं, जिसे महाद्वीपीय ग्लेशियर भी कहा जाता है. यह अधिकांशत: ध्रुवीय क्षेत्रों या बहुत ऊंचाई वाले पहाड़ी क्षेत्रों में होता है. हिमालयी क्षेत्रों में भी ऐसे ही ग्लेशियर पाए जाते हैं. किसी भू-वैज्ञानिक हलचल (गुरुत्वाकर्षण, प्लेटों के नजदीक आने, या दूर जाने) की वजह से जब इसके नीचे गतिविधि होती है तब यह टूटता है.
कई बार ग्लोबल वार्मिंग की वजह से भी ग्लेशियर के बर्फ पिघल कर बड़े-बड़े बर्फ के टुकड़ों के रूप में टूटने लगते हैं. यह प्रक्रिया ग्लेशियर फटना या टूटना कहलाता है. इसे काल्विंग या ग्लेशियर आउटबर्स्ट भी कहा जाता है.