एक जैसी सोच की कहानी ( Akbar and birbal ki kahani )

दरबार में काम चल रहा था . सभी दरबारी एक प्रश्न पर विचार कर रहे थे जो राज-काज चलाने की दृष्टि से जरूरी नहीं था।

सभी एक-एक कर अपनी राय दे रहे थे।

बादशाह दरबार में बैठे यह महसूस कर रहे थे कि सबकी राय एक दूसरे अलग अलग है।

उन्हें आश्चर्य हुआ कि सभी जन एक दूसरे के जैसे क्यों नहीं सोचते!

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Akbar and birbal ki kahani

तब बादशाह अकबर ने बीरबल से पूछा, ‘क्या तुम बता सकते हो कि लोगों की राय आपस में मिलती क्यों नहीं ? सब अलग-अलग क्यों सोचते हैं ?’


हमेशा ऐसा नहीं होता, बादशाह सलामत!’

बीरबल बोला, ‘कुछ ऐसे सवाल होते हैं जिन पर सभी के विचार समान होते हैं।’ इसके बाद कुछ और काम निपटा कर दरबार की कार्यवाही समाप्त हो गई। सभी अपने-अपने घरों को लौट चले।

उसी शाम जब बीरबल और बादशाह अकबर बगीचे में टहल रहे थे, तो बादशाह ने फिर वही सवाल छेड़ दिया और बीरबल से बहस करने लगे।

तब बीरबल ने एक कोने की ओर उंगली से संकेत करता हुआ बोला, ‘वहां उस पेड़ के निकट एक कुंआ है।

वहां चलिए, मैं कोशिश करता हूं कि आपको समझा सकूं कि जब कोई समस्या जनता से जुड़ी हो तो सभी एक जैसा ही सोचते हैं

मेरे कहने का मतलब यह है कि बहुत-सी ऐसी सवाल हैं जिनको लेकर लोगों के विचार एक जैसे होते हैं।

बादशाह अकबर ने कुछ देर कुंए की ओर घूरा, फिर बोले, ‘लेकिन मैं कुछ समझा नहीं, तुम्हारे समझाने का ढंग कुछ थोड़ा अजीब है।’ बादशाह जबकि जानते थे कि बीरबल अपनी बात सिद्ध करने के लिए ऐसे ही प्रयोग करते रहते है।

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बीरबल बोला, ‘आप शाही फरमान जारी कराएं कि नगर के हर घर से एक लोटा दूध लाकर बाग में स्थित इस कुंए में डाला जाए।

दिन पूर्णमासी का होगा। हमारा नगर बहुत विशाल है, यदि हर घर से एक लोटा दूध इस कुएं में पड़ेगा तो यह दूध से भर जाएगा।’

बीरबल की यह बात सुन बादशाह अकबर ठहाका लगाकर हंस पड़े।

फिर भी उन्होंने बीरबल के कहेनुसार फरमान जारी कर दिया। शहर भर में मुनादी करवा दी गई कि आने वाली पूर्णमासी के दिन हर घर से एक लोटा दूध लाकर शाही बाग के कुंए में डाला जाए। जो ऐसा नहीं करेगा उसे सजा मिलेगी।

पूर्णमासी के दिन बाग के बाहर लोगों की कतार लग गई। इस बात का विशेष ध्यान रखा जा रहा था कि हर घर से कोई न कोई वहां जरूर आए। सभी के हाथों में भरे हुए पात्र (बरतन) दिखाई दे रहे थे।

बादशाह अकबर और बीरबल दूर बैठे यह सब देख रहे थे और एक-दूसरे को देख मुस्करा रहे थे। सांझ ढलने से पहले कुंए में दूध डालने का काम पूरा हो गया। हर घर से दूध लाकर कुंए में डाला गया था।

जब सभी वहां से चले गए तो बादशाह अकबर व बीरबल ने कुंए के निकट जाकर अंदर झांका। कुंआ मुंडेर तक भरा हुआ था। लेकिन यह देख बादशाह अकबर को बेहद हैरानी हुई कि कुंए में दूध नहीं पानी भरा हुआ था। दूध का तो कहीं नामोनिशान तक न था।

हैरानी भरी निगाहों से बादशाह अकबर ने बीरबल की ओर देखते हुए पूछा, ‘ऐसा क्यों हुआ? शाही फरमान तो कुंए में दूध डालने का जारी हुआ था, यह पानी कहां से आया? लोगों ने दूध क्यों नहीं डाला?’

बीरबल एक जोरदार ठहाका लगाता हुआ बोला, ‘यही तो मैं सिद्ध करना चाहता था हुजूर!

मैंने आपसे कहा था कि बहुत-सी ऐसी बातें होती हैं जिस पर लोग एक जैसा सोचते हैं, और यह भी एक ऐसा ही मौका था।

लोग कीमती दूध बरबाद करने को तैयार न थे। वे जानते थे कि कुंए में दूध डालना व्यर्थ है। इससे उन्हें कुछ मिलने वाला नहीं था।

इसलिए यह सोचकर कि किसी को क्या पता चलेगा, सभी पानी से भरे बरतन ले आए और कुंए में उड़ेल दिए।

नतीजा ,दूध के बजाय पानी से भर गया कुंआ।’

बीरबल की यह चतुराई देख बादशाह अकबर ने उसकी पीठ थपथपाई।बीरबल ने सिद्ध कर दिखाया था कि कभी-कभी लोग एक जैसा भी सोचते हैं।